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________________ (५३) लवण समुद्र में से जम्बू द्वीप की जगती के विवर-कंदरा मार्ग द्वारा नौ योजन प्रमाण काया वाले मछली जम्बूद्वीप में लवण समुद्र के प्रवेश करते है । (२७२) एवं च -, क्वचिदयमुदधिः सुधांशु चन्द्रातपधनसारसमुज्जवलश्चकास्ति। गत शिखशिरसः शिखाभिरामो, रहसि हसन्निव वारिधीन शेषान् ॥२७३॥ क्वचिदुदभदमन्दभानुतेजो, घुसूणरसप्रसरारूणान्तरालः। प्रकटमिव वहन्नदीषु रागं, हृदिरसतः पति तासु वल्लभासु ॥२७४ ॥ युग्मं ।। और वह इस प्रकार से - किसी समय यह समुद्र अमृत समान किरणों वाले चन्द्र के प्रकाश रूपी चन्दन से उज्जवल हुआ और शिखा से मनोहर बने उस शिखा के ऊपर आए शिखा रूपी मस्तक से रहित समस्त समुद्रों को मानो एकान्त मे हंसता हो ऐसा शोभता है, कभी उदय हुए तीव्र सूर्य के प्रकाश रूपी केशर रस के फैलाव से उसका अंतराल (बीच बीच) में भाग लाल हो गया है, इस प्रकार यह समुद्र अपने हृदय (मध्य भाग) में प्रेम रस से गिरती नदी रूप वल्लभा ऊपर मानो प्रगट रूप में राग धारण करता हो इस तरह शोभायमान हो रहा है । (२७३-२७४) .:. क्वचिदनणुगुणैर्विभाति मुक्ता मणिभिरूडुप्रतिबिम्बतैरिवान्तः । _ अविरत गति खिन भानु मुक्तैः, क्वचन कर प्रकरैखिप्रवालै ॥२७॥ किसी स्थान पर महा मूल्यवान मोती न हो इस प्रकार समुद्र में प्रतिबिंब बने नक्षत्रों द्वारा यह समुद्र शोभायमान हो रहा है, तथा किसी स्थान पर अविरत-लगातार गमन करने से श्रांत (परिश्रम से थका हुआ) बने सूर्य ने मानो मुक्त किया हो ऐसी किरणं समान प्रवाल-मूंगा से यह समुद्र शोभायमान हो रहा है । (२७५). क्वचन जल गजैर्नियुद्ध सज्जैरस कृदुदस्तकरोद्धरैः करालः । जगदुपकृति कारिनीरपानोपनतघनेषु घृतप्रतीभशङ्कः ॥२७६ ॥ जगत का उपकार करने वाला नीर (पानी) का पान करने के लिए बादल में शत्रु हाथी की शंका करते बारम्बार ऊंची करते सूंढ से भयंकर और युद्ध के लिए तैयार हुए जल हस्तियों से यह लवण समुद्र किसी स्थान पर विकराल लगता है । (२७६) .
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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