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________________ (५२) शतानि सप्तकालोदे, सहस्रमंतिमेऽम्बुधौ । गुर्वङ्गमानं मत्स्यानामल्पमत्स्याः परेऽव्ययः ॥२६६ ॥ उसमें से इस लवण समुद्र में मछली उत्सेध अंगुली के माप से पांच सौ योजन की होती है, कालोदधि समुद्र में सात सौ योजन की माप वाली होती है तथा स्वयं भूरमण समुद्र में एक हजार योजन के माप वाली होती है । यह शरीरमान उत्कृष्ट समझना । तथा अन्य समुद्र में मछली आदि अल्प संख्या में होते है । (२६८-२६६) योगशास्त्र के चौथे प्रकाश में तो लवण समुद्र कालोदधि और स्वयं भूरमण समुद्र के बिना अन्य समुद्रों में मछली आदि नहीं होते, ऐसा कहा है तत्व तो बहुश्रुत ज्ञानी पुरुष जाने । स्युर्योनिप्रभवा जाति प्रधानाः कुलकोटयः । । लवणे सप्त मत्स्यानां कालोदवारिधौ ॥२७०॥ अर्द्ध त्रयोदश तथा, मत्स्यानां कुलकोटयः । स्वयम्भू रमणाम्भोधौ, प्रज्ञप्ताः परमेष्टिभिः ॥२७१॥ योनि से उत्पन्न हुए और मुख्य जाति वाले मछलियों की कुल कोटियां लवण समुद्र में सात प्रकार से है, कालोदधि समुद्र में नौ प्रकार से है और स्वयं भूरमण समुद्र में साढ़े बारह प्रकार से है । इस तरह परमोपकारी श्री परमेष्ठि ने फरमाया है । (२७०-२७१) तथा च जीवाभिगमे - 'लवणे णं भंते । समुद्दे कइमच्छ जाति कुल कोडि जोणी पमुह सव सहस्सा पण्णता ? गोयम ! लवणे सत्त, कालेए नव, सयं भूरमणे अद्धतेरस त्ति ।' 'श्री जीवाभिगम सूत्र में भी कहा है कि - हे भगवन ! लवण समुद्र में मछली की जाति कुल कोटी योनि आदि कितने लाख कहा है ? इस प्रश्न का उत्तर भगवान देते हैं हे गौतम ! लवण समुद्र में सात, कालोदधि में नौ और स्वयं भूरमण समुद्र में साढे बारह कुल कोटि होते हैं ।' जम्बू द्वीपे प्रविशन्ति, मत्स्या लवण तोयधेः । नव योजन प्रमाणा जगती विवराघ्वना ॥२७२ ॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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