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- विशेषणवती ग्रन्थ में कहा है कि - वहां प्रश्न रखा है कि :- "सोलह हजार योजन से ऊंची शिखा में ज्योतिष्क का विघात क्यों नहीं होता है ?"
इसका उत्तर देते है - सूर्य प्रज्ञप्ति सूत्र में कहा है कि -ज्योतिष्क के सर्व विमान स्फटिक रत्न के बने हुए होते हैं, जब लवण समुद्र के ज्योतिष्क के विमान जल स्फटिकमय है । (२६०) (अ) .. जंसव्वदीवसमुद्देसुफालियामयाइंलवणसमुद्देचेवकेवलंदगफालियाम याइं तत्थेद मेव कारणं - मा उदगेण विधाओभव उत्ति,जंसूरपण्ण त्तीए चेव भणियं -
इस विषय पर विशेषणवती में उल्लेख है - सर्व द्वीप समुद्र के ज्योतिष्क के विमान केवल स्फटिकमय है और केवल लवण समुद्र के ज्योतिष्क विमान जल . स्फटिक मय है, उसमें यही कारण है कि पानी द्वारा उसका विघात नहीं होता । इसलिए सूर्य प्रज्ञप्ति सूत्र में भी कहा है कि - .....
लवणं तो(णे जे ) जोइ सियाः उद्धलेसा भवति णायव्वा। तेण परं जोइ सिया अह ले सागा (मु) णेयव्वा ॥२६०॥ (आ) तंपि उदगमाला व भासणस्थमेव लोगढिई एस त्ति ॥"
लवण समुद्र के ज्योतिष्क विमान ऊर्ध्व लेश्या वाले ऊपर जाते प्रकाश वाले जानना । और उसके बाद के ज्योतिष्क विमान नीचे जाते प्रकाश वाले जानना । (२६०) (आ) इसी प्रकार की लोक स्थिति भी उदकमाला-शिखा के (पानी की शिखा को) प्रकाशित करने के लिए है ।"
एवं चत्वारोऽत्र सूर्यश्चत्वारश्च सुधांशवः । नक्षत्राणां शतमेकं , प्रज्ञप्तं द्वादशोत्तरम् ॥२६१॥ द्वि पन्चाशत्समाधिकं, ग्रहाणां च शतत्रयम् । प्रमाणमथ ताराणां, यथाऽऽम्नायं निरूप्यते ॥२६२॥ द्वे लक्षो सप्तषष्टिश्च, सहस्राणि शतानि च । नवैव कोटा कोटीनां, प्रोक्तानि तत्व वेदिभिः ॥२६३॥