SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४८) दृश्यते भ्रमता श्रेण्या मेढीमनु गवामिह । अर्वाचीनापेक्षयाऽन्यगत्याधिक्यं यथोत्तरम् ॥२५२॥ कोल्हू के मध्य में रहे खंभे के गोलाकार फिरते बैलों में पूर्व की अपेक्षा से बाद के बैलों की गति अधिक दिखती है । वैसे उनकी दिखती है । (२५२) एवं सर्वेऽनुवर्तन्ते, जम्बू द्वीपेन्दु भास्कराः । मण्डलान्तरसंचारायनाहर्वृद्धिहानिभिः ॥२.५३॥ . इस तरह से सर्व सूर्य चन्द्र मंडलातर के संचार में, अयन में और दिन की वृद्धि-हानि में जम्बूद्वीप के सूर्य चन्द्र के अनुसार होते हैं । (२५३) ततो जम्बू द्वीप इव, भोत्तराचलावधि । .. यदाऽहर्मेरुतोऽपाच्या, तदैवोत्तरतोऽप्यहः ॥२५४॥ सहैवैवं निशा मेरोः, पूर्व पश्चिमयोर्दिशोः । एवं जम्बूद्वीपरीतिः सर्वत्राप्यनुवर्तते ॥२५५॥ इससे जम्बूद्वीप के समान मानुषोत्तर पर्वत तक जब मेरू पर्वत की दक्षिण में दिन होता है तब उत्तर में भी दिन होता है और उसी समय में मेरू पर्वत के पूर्व पश्चिम दिशा में रात्रि होती है । इस प्रकार से जम्बू द्वीप में सूर्य चन्द्र को चलने की पद्धति है वह सर्वत्र-मानुषोतर पर्वत तक उसी तरह है।। (२५४-२५५) ..... "उक्तं च सूर्य प्रज्ञप्तौ - 'तयाणं लवणं समुद्दे दाहिणड्ढे दिवसे भवति तयाणं उत्तर ड्ढेवि दिवसे भवति, तयाणं लवणसमुद्दे पुरथिमपच्चत्थिमे राई भवइ, एवं जहां जंबू द्दीवे तहेव' एव घात की खण्ड कालोद पुष्करार्द्ध सूत्राण्यपि ज्ञेयानि॥" सूर्य प्रज्ञप्ति सूत्र में कहा है कि - जब लवण समुद्र के दक्षिणार्ध में दिन होता है तब उत्तरार्ध में भी दिन होता है और उस समय लवण समुद्र में पूर्व पश्चिम में रात्रि होती है । इस तरह से जैसे जम्बू द्वीप में है । उसी तरह घातकी खंड, कालोदधि समुद्र और पुष्करांर्ध द्वीप सम्बन्धी बाते हैं वह विशेष रूप से सूर्य प्रज्ञप्ति सूत्र में से समझ लेना चाहिए।
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy