________________
(६)
और सातवीं रज्जु के चार खंडुक में इसकी चार खंडुक चौड़ाई है, आठवीं रज्जु के पहले दो खंडुक में चार खंडुक और दूसरे दो में छ: खंडुक चौड़े होते हैं, नौवीं रज्जु के पहले खंडुक में आठ, दूसरे में दस और तीसरे - चौथे में बारह खंडुक समान इनकी चौड़ाई होती है । इस तरह नौ रज्जु तक की बात हुई । (२३ से २५ ). दशम्याः प्राच्यमर्थं च षोडशखंडुकाततम् ।
परमर्ध तथैतस्या नख खंडुक विस्तृतम् ॥२६॥
दसवें रज्जु के पहले दो खंडुक में सोलह और दूसरे दो खंडुक में ये बीस खंडुक चौड़ाई वाले होते हैं । (२६)
एकादश्याः पूर्वमर्धमपि तावत्समाततम् । द्वितीयमर्थमस्याश्च षोडशखंडुकाततम् ॥२७॥
ग्यारहवें रज्जु के पहले दो खंडुक में बीस खंडुक चौड़ा और दूसरे में 'सोलह खंडुक चौड़ा होता है । (२७)
द्वादश्याः प्राक्तनं त्वर्धं प्रोक्तं द्वादशंखंडुकम् ।
दशखंडुक विस्तारमन्त्यमर्धमुदीरितम् ॥२८॥
बारहवीं रज्जु के प्रथमार्ध में बारह और द्वितीयार्ध में दस खंडुक समान इनकी चौड़ाई होती है । (२८)
आद्य खंड त्रयोदश्या निर्दिष्टं तावदाततम् ।
अष्ट खंडुकविस्तीर्णमग्रिम खंडुक त्रयम् ॥२६॥
तेरहवीं रज्जु के पहले खंडुक के अन्दर दस खंडुक के समान लोक की चौड़ाई होती है और शेष तीन में आठ-आठ खंडुक चौड़ाई होती है । (२६)
चतुर्दश्याः प्राक्तनेऽर्थे खंडुकानि षडायतिः ।
चत्वारि खंडुकान्यस्या विस्तृतिः पश्चिमेऽर्धके ॥३०॥
चौदहवीं रज्जु के प्रथमार्ध में छह खंडुक के समान और द्वितीयार्ध में चार खंडुक के समान इसकी चौड़ाई होती है । (३०)
प्रत्येक मेषामंकानां स्वस्ववर्ग विधानतः ।
भवेद्वर्गित लोकस्यमितिः खंडुक संख्यया ॥३१॥
ये जो-जो अंक कहे हैं उनका वर्ग करने से वर्गित लोक के खंडुकों की संख्या आती है । (३१)