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________________ (५०८) कुलादि प्रयोजनं त्विदम् :पूर्वेषु जाता दातारः संग्रामे स्थायिनां जयः । अन्येषु त्वन्य सेवार्ता यायिनामसदाजयः ॥६६८॥ .. इति कुलाद्याख्या निरूपणम् ॥१३॥ कुलादि नक्षत्र का प्रयोजन कहते हैं कि - कुल नक्षत्रों में जन्मा हुआ मनुष्य दातार होता है, और उनका संग्राम में विजय होता है, शेष नक्षत्रों में जन्मा हुआ पराधीनता के कारण दुःखी होता है, और इनका संग्राम में जय अनिश्चित है, वे सगा. विजयी नहीं होते । (६६८) इस तरह कुलादिकी व्याख्या कही । (१३) धनिष्टाथोत्तराभद्रपदाश्विनी च कृतिकाः । . मार्गः पुष्यश्चैव मघा उत्तराफाल्गुनीति च ॥६६६॥ . चित्रा विशाखा मूलं चोत्तराषाढा क्रमम् । श्रावणादिमासराकाः प्रायः समापयन्तियत् ॥६७०॥ तत एवं पूर्णिमानां द्वादशानामपि क्रमात् । एषामुडूनां नाम्नां स्युः नामधेयानि तद्यथा ॥६७१॥ अब नक्षत्रों के अमावस्या और पूर्णिमा के योग विषय में कहते हैं । धनिष्टा, उत्तराभाद्रपदा, अश्विनी, कृत्तिका, मृगशीर्ष, पुष्य, मघा उत्तरा फाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, मूल और उत्तराषाढा ये नक्षत्र अनुक्रम से प्रायः कर श्रावणादि महीने की पूर्णिमा को पूर्ण करते है, और इससे ही उन नक्षत्रों के नाम से अनुक्रम से बारह पूर्णिमाओं के नाम पड़े हैं । जैसे कि - (६६६-६७१) श्राविष्टी च प्रौष्टपदी तथैवाश्वयुजीत्यपि । कार्तिकी मार्गशीर्षी च पौषी माघी च फाल्गुनी ॥६७२॥ चैत्री च वैशाखी ज्येष्टी मौलीत्याख्या तथा परा । आषाढीत्यन्विता एताः सदारूढाश्च कर्हिचित् ॥६७३॥ युग्मं ॥ जैसे कि - श्रावणी, भाद्रपदी, आश्विनी, कार्तिकी, मार्गशीर्ष, पौषी, माघी, फाल्गुनी, चैत्री, वैशाखी, ज्येष्ठी अथवा मौली और आषाढी । ये बारह नाम अन्वय युक्त हैं और कहीं-कहीं तो सदा रूढ हैं । (६७२-६७३) श्राविष्टा स्याद्धनिष्टेति तयेन्दुयुक्तयान्विता । श्राष्टिी पौर्णमासी स्यात् एवमन्या अपि स्फुटम् ॥६७४॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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