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________________ (५००) अब इसके अधिष्ठायक देवता कहते हैं - ब्रह्मा, विष्णु, वसु, वरूण, अज, अभिवृद्धि, पूषा, अश्व, यम,अग्नि, प्रजापति सोम, रूद्र, अदिति, बृहस्पति सर्प,पितृ, भग, अर्यमा, सूर, त्वष्टा, वायु, तथा इन्द्र जो कि नायक एक है, तथा अग्नि, मित्र, इन्द्र, नैऋत आप और तेरह विश्वदेवो इस तरह नाम वाले देव हैं । अभिवृद्धि का अपर नाम अहिर्बुघ्न भी कहलाता है । सोम का नामचन्द्र है और सूर का रवि अपर नाम है। बृहस्पति प्रसिद्ध ग्रह भी कहलाता है । वे अभिजित् आदि नक्षत्रों के स्वामी.. हैं, वे तुष्टमान हो तो नक्षत्र भी तुष्टमान होते है और वे रूष्ट हो तो नक्षत्र भी रूष्टमान होते हैं । (६१७ से ६२१) देवानामप्युडूनां स्युः यदधीशाः सुराः परे । तत्पूर्वोपार्जित तपस्तारतम्यानुभावतः ॥६२२॥ : स्वामि सेवक भावः स्यात् यत्सुरेष्वपि नृष्विव । यथा सुकृतमैश्वर्य तेजः शक्ति सुखांदि च .॥६२३॥ देवतुल्य माने जाते नक्षत्रों को भी ऊपर कहे अनुसार अन्य देव स्वामी रूप में है, वे पूर्व उपार्जित तप के तारतम्य के कारण से समझना । मनुष्यों के समान देवों में भी स्वामी सेवक भाव होता है, और ऐश्वर्य, तेज, शक्ति तथा सुखादि समस्त पुण्य के अनुसार प्राप्त होता है । (६२२-६२३) . विख्यातौ चन्द्र सूर्यो यौ सर्वज्योतिष्क नायकौ। तयोरप्यपरः स्वामी परेषां तईि का कथा ॥६२४॥ . जगत प्रसिद्ध ऐसे चन्द्र और सूर्य सर्व ज्योतिष्क मंडल के नायक है, उनके भी जब स्वामी दूसरे है, तो अन्यव्यक्तियों की क्या बात करनी ? (६२४) तथा चपंचमांगे।सक्कस्स देविन्दस्स देवरणे सोमस्स महारण्णो इमे देवा आणा उववाय वयण निद्देसे चिट्ठति । तं जहा । सोमकाइया वा सोमदेवकाइया वा बिज्जु कुमारा विज्जु कुमारी ओ अग्नि कुमारा अग्नि कुमारीओ वाउकुमारा वाउकुमारी ओ चन्दा सूरा गहा णक्खता तारारूवा इत्यादि ॥" इति देवताः ॥६॥ पांचवे अंग श्री भगवती सूत्र में कहा है - देवों का इन्द्र, देवों का राजा सौम्य महाराजा जो शकेन्द्र है, उसकी आज्ञा का पालन करने के लिए सौम्य कायावाले देव हो, अथवा सौम्य आकृति वाली देवी हो, विद्युत्कुमार या विद्युत्कुमारियां हो, अग्नि
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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