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तत्र पंचदशाद्यानि षट्कं षट्कं परद्वयम् । अहो रात्रः सप्तषष्टिभागीकृतोऽत्र कल्प्यते ॥५८५॥
उसमें पहले प्रकार में पंद्रह नक्षत्र है, दूसरे प्रकार के छः है और तीसरे प्रकार के भी छः है । यहां एक अहोरात्रि में इसके सड़सठ भाग कल्प होते हैं । (५८५)
ततः समक्षेत्रभानि प्रत्येकं सप्तषष्टिधा । कल्प्यानीति पंचदश सप्तषष्टिगुणीकृताः ॥५८६॥ जातं सहस्रपंचाढयमर्थक्षेत्रेषु भेषु च । सार्धास्त्रयस्त्रिंदंशाः प्रत्येकं कल्पनोचिताः ॥५८७॥ युग्मं ॥ ततश्च- षडघ्नाः सार्धस्त्रयस्त्रिशज्जातं सैकं शतद्वयम् ।
___ सार्धक्षेत्रेषु प्रत्येकं भागाश्चा(शयुक् शतम् ॥५८८॥ सार्धक्षेत्राणि षडिति त एते षड्गुणीकृताः । सत्रीणि षट्शतान्येक विंशति श्चाभिजिल्लवाः ॥५८६॥ अष्टादश शतान्येवं त्रिंशानि सर्वसंख्यया । एतावदंशप्रमित स्यादेक मर्धमण्डलम् ॥५६०॥
इसके बाद प्रत्येक समक्षेत्री नक्षत्र के भी सड़सठ-सड़सठ कल्प हैं, अतः पंद्रह समक्षेत्री नक्षत्र है, इसका ६७x १५ से गुणा करते १००५ अंश होते हैं । और प्रत्येक अर्थ क्षेत्री नक्षत्र इसी तरह से ३३ १/२ भाग की कल्पना करना उसके नक्षत्र है, अत: ३३ १/२x६ से गुणा करते २०१ अंश होते हैं । इसी ही तरह से प्रत्येक सार्ध क्षेत्र नक्षत्र के १०० १/२ भाग कल्पना करने से उसके छः नक्षत्र है अतः १०० १/ २४६ से गुणा करते = ६०३ अंश होता है। इस तरह २७ नक्षत्रों के १००५+२०१+६०३ को मिलाकर कुल १८ अंश होते हैं । इसमें २८वें अभिजित् नक्षत्र के २१ अंश मिलाने पर कुल १८३० अंश होते हैं । इतने अंश प्रमाण एक अर्ध मंडल होता है । (५८५-५६०) - तावदेवापरमिति द्वाभ्यामिदं निहन्यते ।
षट्यधिकानि षट्त्रिंशच्छतानीत्य भवन्निह ॥५६१॥
दूसरा अर्धमंडल भी इतना ही होने से इसके भी १८३० अंश होते है अतः कुल मिलाकर ३६६० अंश होते हैं।
त्रिशन्मुहूर्ता एकस्मिन्नहोरात्र इति स्फुटम् । सषष्टि षट् त्रिंशदंशतेषु कल्पनोचिताः ॥५६२॥