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________________ (४८६) अब मेरू पर्वत का अबाधा विषय कहते हैं । सब से अन्दर का नक्षत्र मंडल मेरू पर्वत से ४४८२० योजन में रहा है, और सब से बाहर का नक्षत्र मंडल मेरू पर्वत से ४५३३० योजन में रहा है, इस आधार पर आठ नक्षत्र मंडलों का माप पूर्व (श्लोक ५१२) में कहा है वह सही मिलता है, ४५३३०-४४८२० = ५१० योजन होता है । (५१७-५१८) विष्कम्भायाम परिधि प्रमुखं मानमेतयोः । रवेः सर्वान्तर सर्व बाह्य मण्डलयोरपि ॥५१६॥... इति मण्डल विष्कम्भादि ॥५॥ अब मंडल की चौड़ाई आदि कहते हैं - सूर्य के सर्व अभ्यन्तर और सर्व बाह्य इस तरह दो मण्डल चौड़ाई, आयाम और परिधि आदि के अनुसार ही इन नक्षत्रों की चौड़ाई, आयाम, परिधि आदि है । (५१६) ...... सहस्राणि पंच शतद्वयं च पंचषष्टियुक् । योजनानि योजनस्य भक्तस्यैकस्य निश्चितम् ॥५२०॥ एक विंशत्या सहस्त्रैः षष्टयाढयैः नवभिः शतैः । विभागाश्च समधिकाः पूर्वोक्तयोजनोपरि ॥५२१॥ अष्टादश सहस्राणि शतद्वयं त्रिषष्टियुक् । सर्वान्तमंडलोडूनां मुहूर्तगतिरेषिका ॥५२२॥ अब मुहूर्त गति के सम्बन्ध में कहते हैं - सर्व अभ्यन्तर मंडल में रहे नक्षत्रों की मुहूर्त गति ५२६५ १८२६३/२१६६० योजन के सद्दश है । (५२०-५२२) उपपत्ति श्चात्र :- . नक्षत्रं सर्वमप्यत्र पूरयेत् स्वस्वमण्डलम् । मुहूत्तैरेकोनषष्टया मुहूर्तस्या तथा लवैः ॥५२३॥ ससप्तषष्टित्रिशत् विभक्तस्य त्रिभिः शतैः । .. सप्तत्तरैः प्रत्ययश्च त्रैराशिकात्तदुच्यते ॥५२४॥ उसकी सिद्धि-समझ इस तरह है - प्रत्येक नक्षत्र अपना अपना सम्पूर्ण मण्डल ५६ ३०७/३१७ मुहूर्त में पूरा करते हैं, उसके आगे कहा है, उस तरह त्रैराशिक हिसाब से निश्चय करना चाहिए । (५२३-५२४) ।
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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