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(४८०)
वर्तमानस्य च याम्यायनस्य वासरा गताः । एकादश लवा: पंचत्रिशच्च सप्तषष्टिजाः ॥४६०॥ अत्र पूर्णा भविष्यन्ति समाप्ते पंचमे तिथौ । एवमन्यत्रापि भाव्यं करणं गणको त्तमैः ॥४६१॥
उदाहरण तौर पर जैसे कि युग के आदि से लेकन नौ मास जाने के बाद पंचमी के दिन में कौन सा चन्द्रायण है ? उसे जानने के लिए यह प्रकार से करना:नव महिने = १८ पूर्व (पखवाड़ा), उस १८ को १५ से गुणा करना, उसमें पांच तिथि मिलना और चार अवम रात निकला अर्थात् चार क्षय तिथि को निकाल देना । अर्थात् १८x१५ = २७०+५ = २७५-४ = २७१ संख्या आती है, उसमें आधा नक्षत्र
और आधे महीने अर्थात् १३ ४४/६७ से भाग देना । वह इस प्रकार २७११३. ४४/ ६७ अर्थात् २७१६१५/६६ यानी २७१ ६७/६१५. याने १८१५७/६१५ नक्षत्र मास के दिन आते हैं । इसका भाग करते भाग में १६आयेंगे वे १६ आयन वर्ष का आधा भाग व्यतीत हुआ समझना। उसमें शेष ७७२ बढेगा उसे ६७ से भाग देना भाग में ११ आयेंगे वह ११ दिन व्यतीत हुए हैं, ऐसा समझना शेष ३५/६७ बढ़ गये वह बारहवां दिन व्यतीत होना का समझना, अर्थात् समझने का जो १६वां अंक विषय है अर्थात व्यतीत हुआ वह चन्द्र का उत्तरायण व्यतीत हो गया है, वर्तमान काल में दक्षिणायन के ११ ३५/६७ दिन व्यतीत हुए हैं। और पंचमी समाप्त होगी वह पूर्ण होगा। विशेष जानकारी इस विषय में ज्ञानी गुरु महाराजा से जान लेना इस करण के अनुसार ज्योतिषियों को अन्यत्र से भी जान लेना चाहिए । (४८१ से ४६१ तक)
इन्दुः तत्परिवारश्च रूपकान्त्ययादिभिः भृशम् । स श्रीक इति विख्यातः ससी प्राकृत भाषाया ॥४६२॥ मृगश्चिन्हं विमानेऽस्य पीढिकायां प्रतिष्ठितम् । मृगांकित विमानत्वात् मृगांक इति वोच्यते ॥४६३॥
चन्द्रमा और इनका परिवार रूप, कान्ति आदि में अत्यन्त सश्रीक अर्थात शोभायमान है । और इससे वह प्राकृत भाषा में ससी इस नाम से प्रसिद्ध है । इसके विमान की पीठिका पर मृग चिन्ह-निशान है । अतः मृग के चिन्हवाला विमान होते से इसे मृगांक भी कहते हैं । (४६२-४६३)
"तथा चपंच मांगे-से केणतुणं भंते एवं वुच्चइ चंदे ससी?चंदे सर्स