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.. 'क्षेत्र लोक (पूर्वार्द्ध)' नाम से प्रसिद्ध लोक प्रकाश' ग्रन्थ का दूसरा भाग (सर्ग १२ से २० तक) आपके हाथों में हैं । वर्ण्य विषय की अनुक्रमणि का इस प्रन्थके प्रारम्भिक पृष्ठों पर दी गई है, इससे विषय अन्वेषन में सुविज्ञ पाठक जन को सुविधा होगी। इस ग्रन्थ का विषय यद्यपि दुरुह है फिर भी सूक्ष्मति सूक्ष्म विचार पूर्ण रूप से जैन शैली के अनुरूप हैं । भाषानुवाद में मेरी मतिमंदता अथवा कथंचित् प्रमादवश कहीं कोई स्खलनता रही है तो मिच्छामि दुक्कडं करोमि"। सुहय एवं सुविज्ञजन विचार सहित अध्ययन करें । कहा भी है कि -
अवश्यं भाविनो दोषाः, छद्मस्थत्वानु भावतः। समाधिंतन्वते सन्तः, किंनराश्चात्र वक्रगा ॥ गच्छतः स्खलनं क्वापि, भवत्येव प्रमादतः । हसन्ति दुर्जनास्तत्र, साधयन्ति सजनाः ॥
शिवं भवतु-सुखं भवतु-कल्याणं भवतु
आचार्य पद्म चन्द्र सूरि का धर्म लाभ