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(४३६) और लगभग पंद्रह (३१८३१५) योजन ही आता है । यहां भी ऊपर तो तीन सौ और चौदह योजन होता है, फिर भी उसके ऊपर अड़तीस अंश अधिक होने से तीन सौ और लगभग पंद्रह कहा है। इस तरह गणित शास्त्र के जानने वाले को सम्यग् रूप से विचार कर लेना चाहिए।"
एवं कृता मण्डलानां परिक्षेप प्ररूपणा । गतिं प्रतिमुहूर्तं च बूमहे प्रति मण्डलम् ॥२१०॥
इस तरह से सूर्य के प्रत्येक मंडल के परिधि का कथन करके अब इन प्रत्येक मंडल में सूर्य की प्रत्येक मुहूर्त में गति के विषय में कहते हैं । (२१०)
एकै क मण्डलं ह्येकमार्तण्डेन समाप्यते । द्वाभ्यां किलाहोरात्राभ्यां मुहूर्ताः षष्टिरेतयोः ॥२११॥ ततः षष्टया विभज्यन्ते परिक्षेपाः स्वकस्वकाः ।
एवं सर्व मण्डलानां मुहूर्तगतिराप्यते ॥२१२॥
एक सूर्य दो अहोरात के अन्दर एक मंडल समाप्त करता है, और दो अहो रात्रि के साठ मुहूर्त होते हैं । इससे उस मण्डल के परिधि के साठ द्वारा भाग देने पर उस मंडल से सूर्य की मुहूर्त गति आती है (२११-२१२) __ एवं च- संक्रम्य चरतः सूयौं सर्वान्तर्मण्डले यदा ।
तदा प्रत्येकमेकैक मुहूर्तेऽसौ गतिस्तयोः ॥२१३॥ नूनं पंच सहस्राणि योजनानां शतद्वयम् । . . एक पंचाशमेकोनत्रिंशदंशाश्च षष्टिजाः ॥२१४॥ युग्मं ॥
और वह इस तरह - सर्व से अन्दर के मंडल में संक्रमण करके जब दोनों सूर्य गमन करता है, उस समय प्रत्येक मंडल में एक मुहूर्त के अन्दर उनकी गति पांच हजार दो सौ इकावन पूर्णांक उन्तीस साठांश (५२५१ २६/६०) योजन होता है । (२१३-२१४)
द्वितीयादि मण्डलेएवप्येवं परिरयैः स्वकैः । . मुहूर्तगतिरानेया षष्टया भक्तैर्विवस्वतोः ॥२१५॥ .. इसी प्रकार द्वितीयादि मंडलों में भी उस-उस मंडल के परिधि का साठ से भाग देने पर दोनों सूर्य का मुहूर्त गति का प्रमाण आता है । (२१५)