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(३३६)
___ अंजनो नाम दिड्नागो नैर्ऋत्यां मेरूभूधरात् ।
शीतोदायाः पश्चिमतः प्रयान्त्याः उत्तरां प्रति ॥६५॥
मेरू पर्वत के नैऋत्य और उत्तर तरफ बहती शीतोदा नदी के पश्चिम में , अंजना नामक चौथा गजकूट पर्वत है । (६५)
दिङ्नागः कुमदोऽप्येवं नैऋत्यामेव मेरूतः ।
शीतोदयाः दक्षिणतः प्रयान्त्या वारूणीं प्रति ॥६॥
मेरू पर्वत के नैऋत्य में ही और पश्चिम की ओर बहती शीतोदा नदी के दक्षिण में कुमुद नाम का पांचवा गजकूट पर्वत है । (६६)
उत्तरापरतो मेरोः पलाशो नाम दिग्गजः । .. पश्चिमाभिमुखं यान्त्या शीतोदाया उदक् च सः ॥७॥
मेरु पर्वत से वायव्य कोने में और पश्चिम दिशा में बहने वाली शीतोदा नदी के उत्तर में पलाश नाम का छठा गजकूट पर्वत है । (६७)
अथावतंसकोऽप्येवं वायुकोणे सुमेरूतः । ...: स शीतायाः पश्चिमतः प्रयान्त्याः दक्षिणां प्रति ॥८॥
इसी तरह से मेरूपर्वत से वायव्य कोने में और दक्षिण दिशा बहने वाली शीता नदी से पश्चिम में अवतंसक नाम का सातवां गजकूट पर्वत है । (६८)
. . मेरोरूत्तर पूर्वस्यामष्टमो रोचनाचलः । - दक्षिणाभिमुखं यान्त्याः शीतायाः पूर्वतश्च सः ॥६६॥
. मेरू पर्वत के उत्तर पूर्व में और दक्षिण में जाती शीता नदी के पूर्व में रोचन गिरि नाम का आठवा गजकूट पर्वत है । (६६)
एकैकस्यां विदिश्येवं द्वौ द्वौ कूटौ निरूपितौ । ..प्रासाद सिद्धायतनान्तरालेषु किलाष्टसु ॥१००॥ .
इस तरह एक-एक विदिशा में दो-दो गजकूट पर्वत आये हैं। ये आठों प्रासाद और सिद्धायतन के बीच-बीच में आठ के अन्तर है । (१००)
तथाहि वृद्ध संप्रदाय :भद्रशालक्ने मेरोः चतस्रोऽपि दिशः किल । नदी प्रवाहैः रूद्धाः तहिक्ष्वे वार्हद गृहाणि न १०१॥