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________________ (३३८) अग्नि कोण और नैऋत्य कोण में जो दो प्रासाद हैं, वे सौधर्म इन्द्र के हैं, और इसके योग्य आसनों से सुशोभायमान है । (८८) वायव्यामथ चैशान्यां यौ प्रसादौ प्ररूपितौ । तावीशानसुरेन्द्रस्य तद्योग्यासन शोभनौ ॥६॥ वायव्य कोण और ईशान कोण में जो दो प्रासाद हैं, वे ईशान इन्द्र के हैं, और वे इसके योग्य आसनो से शोभायमान हो रहे है । (८६) अष्टौ दिग्गजकूटानि वनेऽस्मिन् जगदुर्जिनाः । गजाकृतीनि कवयो यान्याहुः दिग्गजा इति ॥६०॥ ... इस वन में आठ दिक् गजकूट पर्वत कहे हैं, वे हाथी के समान आकार वाले होने से गजकूट कहलाते है । (६०) पद्मोत्तरो नीलवांश्च सुहस्त्यथांजनागिरिः । । कुमुदश्च पलाशश्च वतंसो रोचनागिरिः ॥६१॥ पद्मोत्तर, नीलवान्, सुहस्ती, अंजनगिरि, कुमुद, पलाश, वतंश और रोचनागिरि इस तरह ये आठ इनके नाम है । (६१) "अन्ये तु रोचना गिरि स्थाने रोहणा गिरि पठन्ति ॥" अन्य स्थान पर कहीं-कहीं रोचन गिरि को रोहणा गिरि भी कहते हैं। . मेरोरूत्तरपूर्वस्यां शीतायाः सरितः पुनः । गच्छन्त्याः प्रागभिमुखमुत्तरस्यामिहादिमः ॥६२॥ मेरू पर्वत के उत्तर पूर्व में और पूर्व तरफ बहती, शीता नदी के उत्तर में, प्रथम पद्मोत्तर गजकूट पर्वत है । (६२) . प्रादक्षिण्य क्रमेणाथ मेरोदक्षिण पूर्वतः । शीतायाः प्राक्प्रवृत्ताया दक्षिणस्यां न नीलवान् ॥६३॥ प्रदक्षिणा के क्रम से मेरू पर्वत की दक्षिण पूर्व में, और पूर्व तरफ जाती शीता नदी दक्षिण में, दूसरा नीलवान गजकूट पर्वत आया है । (६३) मेरोदक्षिणपूर्वस्यां शीतोदायाश्च पूर्वतः । मेरोदक्षिणदिकस्थायाः सुहस्ती नाम दिग्गजः ॥१४॥ मेरू पर्वत के दक्षिण पूर्व में और मेरू से दक्षिण में रही, शीता नदी के पूर्व में सुहस्ती नामक तीसरा गजकूट पर्वत आया है । (६४)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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