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________________ (३२६) वस्त्र (दुपट्टा) वाला, किरण रूपी जल से भीजा हुआ, और सुशोभित नंदनवन रूपी धोती वाला देव का पुजारी हो इस प्रकार दिखता है । (१३) ____ तीसरे श्लोक से लेकर यहां ग्यारह श्लोक तक में मेरु पर्वत की नाना प्रकार की उपमा-समानता देने में आई है, विद्वान काव्य कर्ता की अनुपम कल्पना शक्ति है, जो वास्तविक में आश्चर्य कारक है । स चैकया पद्मवरवेदिकया परिष्कृतः । वनेन चाभितो नानारत्नज्योति:प्रभासुरः ॥१४॥ .... यह मेरु पर्वत एक पद्म वेदिका और वन से घिरा हुआ है और अनेक रत्नों की कान्ति से प्रकाशमान हो रहा है । (१४) सहस्रान्नवनवर्ति योजनानां स उन्नतः । . योजनानां सहस्रं चावगाढो वसुधान्तरे ॥१५॥ . यह मेरु पर्वत पृथ्वी के ऊपर निन्यानवे हजार योजन ऊंचा है और एक हजार योजन पृथ्वी के अन्दर रहा है । (१५) लक्षयोजनमानोऽसौ सर्वाग्रेण भवेदिति । चत्वारिंशदधिर्कानि चूलाया योजनानि तुः ॥१६॥ इस तरह वह स्वयं सम्पूर्ण एक लाख योजन का है, इसके उपरांत चालीस योजन इसकी चूलिका है । (१६) . ... योजनानां सहस्राणि दशान्या नवतिस्तथा । योजनस्यैकादशांशा दश मूलेऽस्य विस्तृतिः ॥१७॥ मूल में इसका विस्तार दस हजार और नब्बे पूर्णांक और दस ग्याराहांश - १००६० - १०/११ योजन का है । (१७) "अयं जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र, वृहत्क्षेत्र समासाभिप्रायः॥श्री समवायांगे तु मन्दरेण पव्वए मूल दस जोअण सहस्साई विख्खं भेणं पण्णते । इति ज्ञेयम ॥" . "इस तरह जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र का और बृहत् क्षेत्र समास का अभिप्राय है । समावायांग सूत्र में तो इसका विस्तार दस हजार योजन का कहा है।" एक त्रिंशत्सहस्राणि शता नव दशाधिकः । योजनानां त्रयश्चेकादशांशाः परिधिस्त्विह ॥१८॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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