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२१- शंख, २२- नलिन, २३- कुमुद, २४- नलिनावती, २५- वप्र, २६- सुवप्र, २७- महावप्र, २८- वप्रावती, २६- वल्गु ३०- सुवल्गु, ३१- गन्धिल और ३२- गन्धिलावती ये बत्तीस विजय माल्यवान नामक गजदंत पर्वत से लेकर गन्धमादन पर्वत तक अनुक्रम से आए है । (६१-६५)
द्वाविंशतिः शतानीषन्यूनानि च त्रयोदश । योजनानीह विष्कम्भस्सर्वेषु विजयेष्वथ ॥६६॥ सहस्राणि षोडशैषामायामः पंचभिरशतैः । ... योजनानां द्वानवत्या चाढयानि द्विकलाढयया ॥६७॥
इन बत्तीस विजयों की चौड़ाई दो हजार दो सौ तेरह योज़न में कुछ कम है, और इसकी लम्बाई सोलह हजार पांच सौ बयानवे योज़न और ऊपर दो कला कहा है । (६६-६७)
अन्तर्नदीनां सर्वासां वक्षस्कार महीभृताम् । सर्वेषामप्यसावेवायामो यो विचक्षणैः ॥१८॥
सर्व अन्तर नदियों तथा सर्व वक्षस्कार पर्वतों की लम्बाई भी इतनी ही जाननी चाहिए । (६८)
अत्रायमाम्नायः - शीताशीतोदयोार्द्धिप्रवेश एव यद्यपि । विष्कम्भः स्याद्योजनानां पूर्णपंचशतात्मक ॥६६॥ हीनो हीनतरोऽन्यत्र तथाप्युभयकूलयोः । कच्छादीनां विजयानां समीपे रमणोचिन्तौ ॥७०॥ द्वौ द्वौ तयोः स्तः रमण प्रदेशौ तदपेक्षया । सर्वत्राप्यनयोासो भाव्यः पंचशतात्मकः ॥७१॥ विशेषांक ततो विदेह विष्कम्भे शीता व्यासेन वर्जिते ।
अर्धितेऽन्तर्नदीवक्षस्काराद्रिविजया इतिः ॥७२॥
उसकी जानकारी इस तरह है - शीता और शीतोदा नदियों की विष्कम्भ (चौड़ाई) समुद्र को मिलते समय में सम्पूर्ण पांच सौ योजन है, और दूसरे स्थान पर इससे कम होते जाता है, फिर भी कच्छ आदि विजयो के समीप में दोनो किनारे पर इनको देखे तो रमणप्रदेश आता है । इस अपेक्षा से सर्व स्थान पर इनका