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द्वौ क्रोशौ परतो व्यक्तः परिक्षेपस्तथास्य च । द्वे सहस्त्रे द्वे शते च योजनानि त्रयोदश ॥३०३॥
उसके बाद सात सौ योजन से पांचवा अश्वकर्ण नाम का द्वीप आता है, वह सात सौ योजन लम्बा-चौड़ा है और जगती से सात सौ योजन दूर है । जल की सपाटी से इसकी उंचाई जम्बू द्वीप की ओर साढे पांच योजन और पंद्रह, पचानवे अंश १५/६५ है, और समुद्र की और दो कोस है, इसका घेराव दो हजार दो सौ तेरह प्रमाण का है । (३०१-३०३)
अतीत्य योजन शतान्यष्टौ द्वीपात्ततः परम । द्वीप उल्कामुखोऽस्त्यष्टौ शतान्यायत विस्तृतः ॥३०४॥ जगत्या दूर तोऽष्टामिः योजनानां शतैः स्थितः ।. अभ्योनिधे दिशि जलादुच्छ्रितः क्रोशयोर्द्वयम् ॥३०॥ अर्धषष्ठ योजनानि पंचाशीतिं तदाधिकान् । भागान् पांचनवतेयान् जम्बू द्वीप दिशि स्फूट ॥३०६॥ एकोनत्रिंशदाढयानि शतानि पंचविंशतिः । योजनानि परिक्षेपो द्वीपास्यास्य निरूपितः ॥३०७॥
इसी तरह उसी दाढा में उस द्वीप से आठ सौ योजन दूर छठा 'उल्का' नाम नामक द्वीप है, वह आठ सौ योजन लम्बा-चौड़ा है, वहां जगती से आठ सौ योजन का अन्तर है, समुद्र की दिशा में दो कोस जल ऊपर है, और द्वीप की ओर साढ़े पांच योजन और पचासी, पचानवे अंश ८५/६५ जल ऊपर है और इसका घेराव दो हजार पांच सौ उन्तीस योजन का होता है । (३०४-३०७)
योजनानां नवशतान्यतिक्रम्य ततः परम् । शतानि नव विस्तीर्णायतेऽस्ति धनदन्तकः ॥३०८॥ नव योजनशत्यासौ जगत्याः परिधिस्त्विह । ‘शतानि पंच चत्वारिंशान्यष्टाविंशतिः किल ॥३०६॥ सार्द्धा षड् योजनी ताद्दक्षष्टिभागसमन्विताम् ।
जम्बू द्वीप दिशि व्यक्तो दिश्यब्धे स्त्वर्द्ध योजनम् ॥३१०॥
यहां से भी नौ सौ योजन छोड़ने के बाद उसी दाढा में सातवां धनदंतक नाम का द्वीप आता है, वह नौ सौ योजन लम्बा चौड़ा है, और उसका जगती से नौ