SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२१६) मध्ये च त्रिशती पंचसप्तत्याढयां शिरस्यथ । ततानि द्वे शते सार्द्ध गोपुच्छसंस्थितान्यतः ॥१६८॥ युग्मं । ये सारे शिखर रत्नमय हैं, वे गोपुच्छ के समान आकार वाले पांच सौ योजन उंचे, मूल में लम्बाई-चौडाई में पांच सौ योजन, मध्य में तीन सौ पचहत्तर योजन और ऊपर दो सौ पंचास योजन है (१६७-१६८) शताः पंचदशैकाशीत्यधिकाः किंचनाधिकाः । एकादश किंचिदूनषडशीतियुताः शताः ॥१६६॥... शताः सप्तैकनवतिसंयुताः किंचिदूनकाः । परिक्षेपाः क्रमादेषु मूले मध्ये च मूर्धनि ॥२००॥ युग्मं । प्रत्येक शिखर का घेराव मूल के पास में पंद्रह सौ इकासी योजन से कुछ अधिक है, मध्य भाग में ग्यारह सौ सतासी योजन से कुछ कम है और ऊपर सात सौ इकानवे योजन से कुछ कम है । (१६६-२००) सिद्धायतन कूटस्योपरि सिद्धालयो महान् । .. पंचाशद्योजनान्यायामतः स परिकीर्तितः ॥२०१॥ विष्कम्भतो योजनानि प्रज्ञप्तः पंचविंशतिः । षड्विशद्योजनान्यूच्चः त्रिद्वारो भास्वर प्रभः ॥२०२॥ युग्मं । सिद्धायतन नाम के प्रथम शिखर पर देदीप्यमान एक सिद्ध मंदिर है । वह पचास योजन लम्बा पच्चीस योजन चौड़ा और छत्तीस योजन उंचा है, और इसके तीन द्वार प्रकाशमान है । (२०१-२०२) . . बिना प्रतीची त्रिदिशं द्वारमेकैकमुत्रिछुतम् । योजनान्यष्ट चत्वारिं स्याद्विस्तारप्रवेशयोः ॥२०३॥ इन तीनों द्वारों की तीनौं दिशाओं में एक-एक आये हैं । इन प्रत्येक द्वार की उंचाई आठ योजन और चौड़ाई चार योजन की है (२०३) ... सिद्धायतन मध्येऽथ विभाति मणिपीठि का । योजनान्यष्ट विस्तीर्णायता चत्वारि मेदुरा ॥२०४॥ . इस सिद्ध मंदिर में एक मणि पीठिका है । वह आठ योजन लम्बी चौड़ी है, और चार योजन मोटी है । (२०४)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy