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उस मंदिर में पांच सौ धनुष्य विस्तृत और अढाई सौ धनुष्य चौड़ी एक मणि पीठिका है और उसके ऊपर एक देवच्छंदक है । (६६)
पंचचापशतान्येष, विष्कम्भायामतो मतः । तान्येव सातिरेकाणि तुंगत्वेन प्ररूपितः ॥१७॥
उस देवच्छंदक की लंबाई चौड़ाई पांच सौ धनुष्य है, एवं ऊँचाई में इससे कुछ अधिक कहा है । (६७)
अष्टोत्तरं शतं नित्य प्रतिमास्तत्रचाहताम् । उत्सेधांगुलनिष्पन्नधनुः पंचशतोच्छिताः ॥१८॥
उसमें श्री अरिहंत परमात्मा की एक सौ आठ शाश्वत प्रतिमाए हैं । वे उत्सेध अंगुल अनुसार पांच सौ धनुष्य ऊँची है । (६८) - एकैकस्यां दिशि सप्तविंशतिः सप्तविंशतिः ।
एवं चतुर्दिशं ताः स्युः नाम्ना च ऋषभादयः ॥६६॥
ये प्रतिमाएं प्रत्येक दिशा में सत्ताईस-सत्ताईस हैं और इनके ऋषभ आदि चार शाश्वत नाम है । (६६). . .. तासां च जिनमूर्तीनामक रत्नमया नखाः ।
अन्तर्लो हिताक्षरत्नप्रतिसेक मनोहराः ॥१०॥
श्री जिनेश्वर भगवन्त की उन मूर्तियों के नखून अंक रत्नमय हैं, और उसमें लाल रलो की अक्ष छटा होने से वह बहुत मनोहर लगती है । (१००)
पाणिपादतलानि च जिह्वा श्री वत्सचूचुकम् । तालूनि च तपनीयमयानि रिष्टरत्नजाः ॥१०१॥ श्मश्रुरोम राजवश्च ओष्टः विद्रुम निर्मिताः । नासा अन्तर्लो हिताक्षनिषेकास्तपनीयताः ॥१०२॥ युग्मं ॥
उनके हाथ पैर के तलिया, जीभ, श्रीवत्स स्तनाग्र और तालवां सुवर्णमय हैं दाढी और मूछ के बाल रिष्टरत्नो के हैं, ओष्ठ विद्रुममय है और नासिका लाल रत्नमय की निशानी काले सुवर्ण की है । (१०१-१०२)
लोहिताक्ष प्रति सेकान्यक्षीणं कमयानि च । तारका अक्षि पक्ष्माणि भ्रबश्च रिष्टरत्नजा M०३॥