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________________ (१६७) माप होता है । वह इस प्रकार सत्तासी लाख नौ हजार दो सौ उन्तीस योजन और चौदह कला कहा है । (८१-८२) सिद्धायतनं कूटं दक्षिणभरतार्द्ध नामधेय च । खण्डप्रपातकुटं तूर्य तनमाणि भद्राख्यम् ॥८३॥ वैताढयाख्यं पंचममथ षष्ठं पूर्णभद्र संज्ञंच । भवति तमिस्रगुहं चोत्तरभरता च वैश्रमणम् ॥१४॥ वैताढये नव कूटान्येवं ज्ञेयानि तत्र पूर्वाब्धेः । स विधे सिद्धायतनं ततः क्रमात् प्रत्यगखिलानि ॥८५॥ विशेषांक । वैताढय पर्वत पर नौ कूट आए है वह इस प्रकार १- सिद्धायतन, २- दक्षिणभरतार्द्ध, ३- खंड प्रपात, ४- मणि भद्र, ५- वैताढय, ६- पूर्णभद्र, ७- तमिस्रगुह, ८- उत्तरभरतार्द्ध और ६- वैश्रमण । उसमें जो पहला सिद्धायतन कूट है, वह पूर्व समुद्र के पास आया है। कूटान्येतानि सक्रोशान्यूच्चत्वे योजनानि षट् । तावन्त्येव मूलभूमौ विष्कम्भयामतोऽपि च ॥८६॥ मध्ये देशोनानि पंच योजनानि शिरस्यथ । ' साधिकानि त्रीण्युदस्तगोपुच्छसंस्थितान्यतः ॥८७॥ युग्मं । नौ शिखरो की ऊँचाई छः योजन और एक कोस है। उसकी लम्बाईचौड़ाई मूल में, आगे जो ऊँचाई है उतनी ही है। मध्य में पांच योजन से कुछ कम ओर ऊपर तीन योजन से कुछ विशेष है । इस तरह होने से उनका आकार गाय ने पूंछ ऊँचा किया हो इस प्रकार का है (८६-८७) परिक्षेपाः मूलमध्यशिरस्सूनानि विंशतिः । तथोनानि पंचदश साग्राणि नव च क्रमात् ॥८॥ इनका परिक्षेप अर्थात् घेराव, मूल आगे वीस योजन से कुछ कम है, मध्य में पंद्रह योजन से कुछ कम है, और ऊपर नौ योजन से कुछ अधिक है । (८८) अधस्ताच्छिखराद्यावदागतं तत्किलार्द्धितम् ।। कूटोत्सेधार्द्धयुक्कूटे व्यासो यथेप्सितास्पदे ॥६॥ नीचे से चढते अथवा ऊपर से उतरते यदि किसी स्थान का व्यास निकालना
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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