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________________ (१३७) दूसरे प्रतर में आयुष्य स्थिति जघन्य उतनी ही अर्थात् अठारह सागरोपम की है परन्तु उत्कृष्ट में अधिक से अधिक बीस पूर्णांक एक तृतीयांश सागरोपम की है । तथा तीसरे प्रतर में जघन्य स्थिति उतनी ही है । परन्तु उत्कृष्ट रूप में सम्पूर्ण बाईस सागरोपम की है । (२७६-२८०) अवधेर्विषयों ज्येष्ठः सार्धगव्यूतसम्मितः । लघीयांश्चैकगप्यूतमानः प्रोक्तोऽत्रतात्विकैः ॥२८१॥ इन नारकी जीवों को अवधि ज्ञान का विषय जघन्य एक कोश है, और उत्कर्षत: ढेड कोश का है, इस तरह तत्व ज्ञानियों के वचन हैं । (२८१) अन्तरं मरणोत्पत्योर्जघन्यं समयावधि । चतुष्टयं च मासानामुत्कृष्टं तन्निरूपितम् ॥२८२ ॥ इति तमः प्रभा पृथ्वी ॥६॥ इनके च्यवन और उत्पत्ति के बीच का अन्तर कम से कम एक समय का है और उत्कृष्ट- अधिक चार महीने का है। (२८२) इस तरह तमः प्रभा नरक का वर्णन कहा है (६) अथ माघवती नाम्ना सप्तमी कथ्यते मही । .य़ां घोरध्वान्तररूपत्वात् गोत्रात् तमस्तमः प्रभा ॥ २८३॥ अब मांघवती नामक सातवीं नरकपृथ्वी का वर्णन करते हैं । वहां बहुतअतिशय अंधकार होने से उसका नाम तमस्तमः प्रभा कहलाता है । (२८३) प्रथमे योजनान्यष्टौ द्वितीये योजनानि षट् । तृतीये द्वे योजने च वलयाततयः क्रमात् ॥ २८४॥ इसके भी तीन वलय है उसमें से प्रथम आठ योजन का है दूसरा छ: योजन और तीसरा दो योजन का है । (२८४) एवं षोडशभिः पूर्णेर्यो जनैर्जिनभानुभिः । तमस्तमायाः पर्यन्ताद लोकः परिकीर्त्तितः ॥ २८५ ॥ इस हिसाब से इस नरक की पूरे सोलह योजन में सीमा पूरी होती है। उसके वाद चारो तरफ अलोक होता है । (२८५) लक्षमेकं योजनानां सहस्त्रैरष्टभिः सह । बाहल्य मस्यामादिटष्टमत्र चौपर्यधः पृथक् ॥ २८६ ॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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