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________________ (१००) पुद्गलानां परिणतिर्दशधा बन्धनादिका । सापि क्षेत्रस्य स्वभावात्तत्र दुःख प्रदा भवेत् ॥४१॥ पुद्गलों के बन्धनादि दस प्रकार के पुदगल परिणाम होते है । वह भी वहां दुःख दायक ही होता है, यह उस क्षेत्र का स्वभाव है । (४१) तथाहि - बन्धनं चान समय माहा यः पुदगलैः सह । सम्बन्धो नारकाणांस ज्वलज्जवलनदारूणः ॥४२॥ .. इसका स्वरूप इस तरह है - बंधन अर्थात नरक को प्रत्येक समय में होने वाला आहार पुद्गल के साथ का सम्बन्ध यह मानो जाज्वल्यमान अग्नि न हो . इस तरह भयंकर है । (४२) गतिरूष्ट्रखरादीनां सद्दशी दुस्सह श्रमा । । तप्तलोहपदन्यासादपि दुःखप्रदा भृशम् ॥४३॥ इनकी गति गधे और ऊंट आदि की गति के समान अत्यन्त दुःख.मय है, . तपे हुए लोहखंड पर पैर रखने पड़ें इससे भी अधिक दुःखदायक है । (४३) संस्थानमत्यन्त हुंडं लूनपक्षाण्डजोपमम् । कुडयादिभ्यः पुदगलानां भेदः सौऽप्यस्त्र वरकदुः॥४४॥ इनका संस्थान अत्यंत कनिष्ठ समान हुंड (कुब्ज) होता है । पंख काट दिए हो ऐसे पक्षी समान विरूप होता है तथा कुडयादि से इनके जो पुदगल अलग हो जाते है वह भी इनको शस्त्र के प्रहार समान अत्यन्त दुःखदायक हो जाता है । (४४) वर्णः सर्वनिकृष्टोऽति भीषणो मलिनस्तथा । नित्यान्धतमसा ह्येते द्वारजालादिवर्जिताः ॥४५॥ इनका वर्णन करना अत्यन्त निकृष्ट अति भीषण तथा मलिन है और वहां द्वार अथवा खिडकी, जाली आदि कुछ भी नहीं होने से गाढ अंधकारमय स्थान में रहते हैं । (४५) किंचामी श्लेष्मविण्मूत्रकफाद्यालिप्त भूतलाः । मांस केशन नरवदन्त चर्मास्तीर्णाः शमशानवत् ॥४६॥ वहां भूमि श्लेष्म, विष्टा, मूत्र तथा कफ आदि से गन्दी बनी रहती है तथा वहां शमशान की तरह मांस केश, नखून दांत और चमड़े आदि के समूह के ढेर पड़े हुए होते है । (४६)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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