________________
(४७)
ही वस्तुतः श्रावक अवस्था प्राप्त होती है।
जैनाचार्यों ने स्वानुभूति के आधार पर जीवन के अमूल्य ऐसे प्ररेणा सूत्र दिये हैं जो भौतिकता की चकाचौंध से व्यक्ति को दूर रखकर परम सुख की ओर उसे ले जाते हैं। इस दृष्टि से श्रावकाचारों का निर्माण हुआ है जिनमें तात्कालिक परिस्थितियों
और आवश्यकताओं के अनुरूप सामान्य नियमों से थोड़ा-बहुत परिवर्तन परिवर्धन करते हुए वस्तु तथ्य को प्रस्तुत किया गया है। . व्यसन एक आदत है जो स्वयं की और दूसरे की पीड़ा का कारण बनता है। उसे यदि किसी भी कारणवश जीवन में प्रवेश मिल गया तो वह उसे बरबाद किये बिना नहीं रहता। वह एक विष वृक्ष है, अमरवेल है जो अपने ही आश्रयदाता को चूस लेती है जीवन के सारे तट और घाट व्यसन से कट-पिट जाते हैं और दल-दल में फंसकर अपनी मूल सम्पत्ति भी गवाँ बैठते है। यह एक धुन है जो धीरे-धीरे जीवन को समाप्त करने में जुट जाती हैं इसलिए व्यसन की तुलना मृत्यु से की गई हैं। मृत्यु तो एक बार ही कष्ट देती है पर व्यसर जीवन भर कष्ट देते रहते हैं। व्यसन का अर्थ ही है- व्यस्याति सुखाद् स्वर्गाद् वा यत् तत् व्यसनम्। व्यसन की प्रकृति को लक्ष्यकर यह ठीक ही कहा गया है- व्यस्यति प्रत्यावर्तयति पुरुषान् श्रेयसः इति व्यसन तथा व्यसनस्य च मृत्योश्च व्यसनं कष्टमुच्यते। (मनुस्मृति ५२)।
व्यसन संसार रूपी प्रासाद में प्रवेश करने का एक ऐसा महाद्वार है जहाँ से वापिस निकलने का मार्ग पाना कठिन हो जाता है। वह शत्रु से भी अधिक खतरनाक है। इसलिए प्रारम्भ काल से ही किसी न किसी प्रकार के व्यसन की बात साहित्य में उद्धृत होती रही है। महाभारत में कृष्ण ने यादवों से कहा कि द्वारिका की रक्षा के लिये तीन बातें छोड़नी होगी मद्यपान, द्यूत और परस्त्रीसेवन पर वे उन्हें छोड़ नहीं सके। शराब के नशे में चूर होकर द्वैपायन ऋषि को उन्होंने जा छेड़ा और उनके शाप (क्रोध) से द्वारिका भस्म हो गई। आसुरी सभ्यता और मगध का पतन सुरापान और मुक्त व्यभिचार से हुआ यह एक ऐतिहासिक तथ्य है। इसलिए सुकरात का कथन कितना सही लगता है कि शराब, मुक्त यौनाचार और रेशमीवस्त्र इन तीनों के खुले प्रयोग से किसी भी सम्प्रदाय, जाति या देश को गिराया जा सकता हैं इसलिए गाँधी जी ने इन पर पाबन्दी लगाने का अनुरोध किया था। चीन से अफीम का निष्कासन हुआ, तभी उसकी प्रगति हुई। गाँधी ने अफ्रीका जाने से पूर्व तीन बातें छोड़ी थीं- शराब, परस्त्री और मांसाहार। व्यसन की प्रकृति को समझने के लिए ये उदाहरण पर्याप्त हैं। इसलिए पहली प्रतिमाधारी श्रावक के लिए सप्त व्यसनों के त्याग का निर्धारण किया गया है।
वैदिक साहित्य में अठारह प्रकार के व्यसनों का उल्लेख मिलता है। उनमें दस व्यसन कामज हैं और आठ व्यसन क्रोधज है। कामज व्यसन है- आखेट, छूत, दिवा,