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(वसुनन्दि-श्रावकाचार (३१६)
आचार्य वसनन्दि) के विशेष कर्तव्य विनय, वैयावृत्त्य, काय क्लेश, पूजन-विधान, ध्यान, जिन-बिम्ब प्रतिष्ठा आदि का विस्तृत वर्णन किया है। श्रावक धर्म पालन का फल, गुणस्थानों का वर्णन कर्मों का स्थिति खण्डन एवं समुद्घात आदि का वर्णन भी बड़ी कुशलता के साथ किया है।
__ मैं ३१८ गाथाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन करके इतने हिस्से को वसुनन्दी श्रावकाचार के पूर्वार्द्ध का रूप दे रहा हूँ।३१८।।