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________________ (वसुनन्दि-श्रावकाचार (३१५) आचार्य वसुनन्दि) अनेक रोग होते हैं। इसलिये रात्रि में शयन के३-४ घंटे पहले लघु आहार करना चाहिये जिससे आहार शयन के पहले पच जायेगा। वैदिक ग्रन्थ महाभारत के शांतिपर्व में लिखा है चत्वारि नरक द्वाराणि प्रथमं रात्रि भोजनम्। परस्त्रीगमनं चैव, संधानानंत कायिके।।१५।। नरक के ४ द्वार हैं- (१) रात्रि में भोजन करना, (२) पर स्त्री गमन करना, (३) अचार खाना, (४) जमीकन्द खाना। वैदिक ग्रन्थ मार्कण्डेयपुराण में कहा है___ अस्तंगते दिवानाथे, आपो रुधिर मुच्यते। अन्नं मांस समं प्रोक्तं मार्कण्डेय महर्षिणा।।अ०३३, श्लोक ५३।। सूर्य अस्त होने के बाद जल को रुधिर और अन्न को मांस के समान कहते हैं यह मार्कण्डेय महाऋषि ने बताया है। अतः रात्रि भोजन का त्याग अवश्य ही कर देना चाहिए।।३१७।। .. त्रययोगों से रात्रि भोजन का त्याग करना चाहिए एवं बहुप्पयारं दोसं णिसिमोयणम्मि णाऊण। तिविहेण राइभुत्ती परिहरियव्वा हवे तम्हा।।३१८।। अन्वयार्थ (एवं) इस प्रकार, (णिसिभोयणम्मि) रात्रिभोजन में, (बहुप्पयारं - दोसं हवे णाऊण) बहुत प्रकार के दोष होते हैं, जानकर के, (तिविहेण) मन, वचन, काय से, (राइभुत्ती) रात्रिभुक्ति का, (परिहरियव्वा) त्याग करना चाहिए। अर्थ- इस प्रकार रात्रि भोजन में बहुत प्रकार के दोष जान करके मन, वचन, "काय से रात्रि भोजन का परिहार करना चाहिए।। ____ व्याख्या- उपरोक्त चार गाथाओं द्वारा रात्रि-भोजन के सम्बन्ध में बहुत प्रकार के दोष दिखाकर विशद वर्णन किया। रात्रि भोजन करने में बहुत दोष होते हैं, इसलिए उन दोषों को जानकर रात्रि भोजन का त्याग करना चाहिए। ___ यहाँ तक आचार्य वसुनन्दी जी ने श्रावकाचार से सम्बन्धित सभी प्रमुख तथ्यों का कथन कर दिया है। अगर हम स्वामी समन्तभद्र की शैली का ख्याल करें तो लगता है कि यह ग्रन्थ यहीं समाप्त हो गया। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। ग्रन्थकार ने श्रावकाचार का साङ्गोपाङ्ग और विस्तृत वर्णन करने के लिए इस ग्रन्थ में आगे श्रावकों
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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