________________
(वसुनन्दि-श्रावकाचार (३०९)
आचार्य दसुनन्दि) अर्थ- दिन के आठवें भाग में सूर्य के मन्द प्रकाश के हो जाने पर अवशिष्ट काल को आचार्य गण 'नक्त (रात्रि) कहते हैं। केवल रात्रि में भोजन करने को ही नक्त भोजन नहीं कहते, अपितु इस समय में भोजन करना भी रात्रि भोजन है।
रात्रि भोजन त्यागी को रात्रि में बना हुआ रात्रि में खाना, दिन का बना हुआ, रात्रि में खाना तथा रात्रि का बना हुआ दिन में खाना, ये तीनों दोष टालने चाहिये।
आ० अमृतचन्द्र ने लिखा है कि
अर्कालोकेन विना भुञ्जानः परिहरेत्कथं हिंसम्। अपि बोधित प्रदीपे, भोज्यजुषां सूक्ष्मजन्तूनाम्।।
(पुरुषार्थ सिद्ध्युपाय, ११३) - अर्थ- सूर्य के प्रकाश के बिना रात्रि के अन्धकार में भोजन करने वाला दीपक के जला लेने पर भी भोजन में प्रीतिवश गिरने वाले सूक्ष्म जन्तुओं की हिंसा को कैसे बचा कसता है? अर्थात् नहीं बचा सकता।
इससे यह कु-तर्क भी व्यर्थ हो जाता है कि दीपक अथवा लाइट के प्रकाश में भोजन करना दूषक नहीं है निश्चित ही रात्रिभोजन में दोष हैं।।३१४।।
. . रात्रिभोजी कीट-पतंगे भी खा जाता है चम्मट्ठि-कीड-इंदुर'- भुयंग-केसाइ असणमज्झम्मि। पडियं ण किं पि पस्सइ भुंजइ सव्वं पि णिसिसमये।।३१५।।
अन्वयार्थ- (असणमज्झम्मि) भोजन के मध्य, (पडियं) गिरा हुआ, (चम्ममट्ठि-कीड-उंदुर भुयंग-केसाइ) चर्म, हड्डी, कीट-पतंग, चूहा, सर्प और केश आदि, (किंपि) कुछ भी, (ण पस्सइ) नहीं दिखता है, (इसलिए) (णिसिसमये) रात्रि के समय में, (सव्वं पि) सबको भी, (मुंजई) खा जाता है। ____अर्थ- भोजन के मध्य गिरा हुआ चर्म, अस्थि, कीट-पतंग, मेंढक, चूहा, सर्प
और केश आदि रात्रि के समय कुछ भी नहीं दिखाई देता है, और इसलिए रात्री भोजी पुरुष सबको खा जाता है।
व्याख्या- रात्रि में सूर्यप्रकाश के अभाव में अनेक सूक्ष्म जीव उत्पन्न होते हैं। भोजन के साथ यदि जीव पेट में चले गये तो रोग का कारण बनते हैं। यथाइनके पेट में जाने पर
ये रोग होते है चींटी-चींटा
बुद्धिनाश १. ध. दुंदुर.