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[(. वसुनन्दि- श्रावकाचार
(३०५)
( पाणिपत्तम्मि) पाणिपात्र में, (भुंजिज्जो) भोजन करना चाहिए ।
अर्थ - इस प्रकार ही अर्थात् प्रथम उत्कृष्ट श्रावक के समान ही द्वितीय उत्कृष्ट श्रावक होता है, केवल विशेषता यह है कि उसे नियम से केशों का लोंच करना चाहिए, पीछी रखना चाहिए और पाणिपात्र में खाना चाहिए । ।
आचार्य वसुनन्दि
व्याख्या– प्रथम उत्कृष्ट श्रावक अर्थात् क्षुल्लक के समान द्वितीय उत्कृष्ट श्रावक अर्थात् ऐलक होता है, केवल विशेषता यह है कि उसे नियम से मुनियों की तरह केशलोंच करना चाहिए, पिच्छी रखना चाहिए और हाथ में ही भोजन करना चाहिए। यह भी बैठकर ही भोजन करता है ।
पं० आशाधार ने कहा है
तद्वद् द्वितीयः किन्त्वार्यसञ्ज्ञो लुञ्चत्यसौ कचान् । कौपीनमात्रयुग्धत्ते
यतिवत्प्रतिलेखनम् ।। ४८ ।।
स्वपाणिपात्र एवात्ति संशोध्यान्येन भोजितम् ।
इच्छाकारं समाचारं मिथः सर्वे तु कुर्वते । । सा०ध०४९ ।।
अर्थ- दूसरे उत्कृष्ट श्रावक की क्रिया पहले के समान है। विशेष यह है कि
यह ‘आर्य' कहलाता है, दाड़ी, मूंछ और सिर के बालों को हाथ से उखाड़ता है, केवल लंगोटी पहनता है और मुनि की तरह पीछी रखता है। अन्य गृहस्थ आदि के द्वारा अपने हस्तपुट में ही दिये गये आहार को सम्यक् रूप से शोधन करके खाता है। वे सभी श्रावक परस्पर में 'इच्छामि' इस प्रकार के उच्चारण द्वारा विनय व्यवहार करते हैं।
रत्नकरण्ड श्रावकाचार (श्लोक १४७) में कहा है- ऐलक सिर्फ लिङ्ग ओट-लिङ्ग का परदा अर्थात् लंगोट धारण करते हैं और क्षुल्लक लंगोट के सिवाय एक खण्ड वस्त्र भी रखते हैं। खण्डवस्त्र का अर्थ इतना छोटा वस्त्र लिया जाता है कि जिससे शिर ढकने पर पैर न ढक सके और पैर ढकने पर शिर न ढक सके। दोनों ही पैदल विहार करते हैं रेल, मोटर आदि में यात्रा करना इस पद में वर्जित है ।
पहली से लेकर छटवीं प्रतिमा तक के श्रावक को जघन्य श्रावक, सातवीं से नौवीं प्रतिमा तक के श्रावक को मध्यम श्रावक, दशमी तथा ग्यारहवीं प्रतिमा के धारक को उत्तम श्रावक कहा जाता है। ग्यारहवीं प्रतिमा के धारक पुरुष को आर्य और स्त्री को आर्या-आर्यिका कहते हैं। आर्यिका १६ हाथ की एक सफेद साड़ी रखती है। स्त्री पर्याय में धारण किये जाने वाले व्रतों का यह सर्वश्रेष्ठ रूप है, इसलिए इसे उपचार से महाव्रतों का धारक माना जाता है। आर्यिका से उतरता हुआ दूसरा स्थान क्षुल्लिका है। यह १६ हाथ की साड़ी के सिवाय एक सफेद चद्दर भी रखती हैं। ऐलक, क्षुल्लक, आर्यिका और क्षुल्लिका दूसरे दिन शुद्धि के समय बदलने के लिए दूसरा लंगोट, चद्दर