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विसुनन्दि-श्रावकाचार (२९५)
आचार्य वसुनन्दि) जोए करणे सण्णा इंदिय भोम्मादि समणधम्मे य।
अण्णोणेहि अब्भत्था अट्ठारससीलसहस्साई।मूलाचार १३६९।। ३ योग४३ करणx४ संज्ञाx५ इन्द्रिय ४१० भूमि आदि ४१० धर्म = १८००० (अठारह हजार)।
भावप्राभृत (११८) की टीका में आ० श्रुतसागर शील के भेदों को अन्य प्रकार से कहते हैं- अचेतनकाष्ट, पाषाण, लेप से निर्मित स्त्रियाँ ३ प्रकार x योग ४३ कृत, कारित, अनुमोदना x ५ स्पर्शादि x २ द्रव्य भाव x चार कषायें = ७२० ।
- चेतन स्त्री-देवी, मानुषी, तिरश्ची ३ प्रकार x ३ योग x कृत, कारित, अनुमोदना x ५ स्पर्शादि x २ द्रव्य-भाव ४४ संज्ञायें x १६ कषायें = १७२८०।
चेतन और अचेतन दोनों प्रकार की स्त्रियों से विरक्ति रूप शील ७२०+१७२८०-१८००० (अठारह हजार) प्रकार का होता है। ऐसे ब्रह्मचर्य का हमेशा पालन करना चाहिए।।२९७।।
आरम्भत्याग प्रतिमा जं किंचि गिहारंभं बहु थोगं वा सयाविवज्जेइ।
आरम्भणियत्तमई सो अट्ठमु सावओ भणिओ।। २९८।।
अन्वयार्थ- (जं किंचि) जो कुछ भी, (बहु थोगं वा) बहुत या थोड़ा, (गिहारंम्भ) गृहकार्य सम्बन्धी आरम्भ को, (सया विवज्जेइ) सदा के लिए छोड़ता है, (सो) वह, (आरम्भणियत्तमई) आरम्भनिवृत्तमति, (अट्ठमु) आठवां, (सावओ) श्रावक, (भणिओ) कहा गया है।
अर्थ- जो कुछ भी थोड़ा या बहुत गृह सम्बन्धी आरम्भ होता है, उसे जो सदा के लिए त्याग करता है, वह आरम्भ से निवृत्त हुई है बुद्धि जिसकी, ऐसा आरम्भ त्यागी आठवां श्रावक कहा गया है।। ... व्याख्या-- जो घर-गृहस्थी सम्बन्धी छोटे-बड़े कार्यों में आरम्भ होता है, उसे जो पुरुष हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ देता है, वह आरम्भ से निवृत्त हुई है, बुद्धि जिसकी, ऐसा आरम्भ का त्यागी आठवां श्रावक कहा गया है। आ० स्वामि कार्तिकेय ने कहा है
जो आरंभं ण कुणदि अण्णं कारयदि णेव अणुमण्णे। . .. हिंसा संत? मणो चत्तारंभो हवे सो हू ।।३८५।। १. अ. थोवं.