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(वसुनन्दि-श्रावकाचार . (२८७)
आचार्य वसुनन्दि) व्याख्या- प्रोषध के दिन शिर से स्नान करना, उवटना करना, साबुन आदि लगाना, सुगन्धित तेल-इत्र आदि द्रव्य लगाना, माला पहनना, बालों आदि का सजाना, शरीर को संस्कारित करना, बार-बार कंघी आदि करना तथा अन्य भी राग को बढ़ाने वाले कारणों को छोड़ देना चाहिए। रत्नकरण्डश्रावकाचार में आ० समन्तभद्र ने कहा है
पञ्चानां पापानामलंगक्रिारम्भगन्धपुष्पाणाम्।
.. स्नानाञ्जननस्यानामुपवासे परिहृतिं कुर्यात्।।१०७।। ___ अर्थ- उपवास के दिन पाँच पापों अलंकार धारण करना, खेती आदि का आरम्भ करना, चन्दन आदि सुगन्धित पदार्थों का लेप करना, पुष्पमालाएं धारण करना या पुष्पों को सूंघना, स्नान करना, अञ्जन-काजल, सुरमा आदि का लगाना इन सबका परित्याग करना चाहिए। दान-पूजादि के निमित्त सामान्य स्नान कर सकता है। उपवास के दिन श्रावक क्या करें
धर्मामृतं सतृष्णं श्रवणाभ्यां पिबतु पापयेद्वान्यान्।
ज्ञानध्यानपरो वा भवतूपवसन्नतन्द्रालुः। ।रत्न. श्रा. १०८।।
अर्थ- उपवास करने वाला व्यक्ति उत्कंठित होता हुआ कानों से धर्मरूपी अमृत को स्वयं पीवे अथवा दूसरों को पिलावे अथवा आलस्यरहित होता हुआ ज्ञान और ध्यान में तत्पर होवे।।२९३।।
प्रोषधोपवास प्रतिमा का उपसंहार . एवं चउत्थठाणं विवण्णियं पोसहं समासेण। १ एत्तो कमेण सेसाणि सुणह संखेवओ वोच्छं।। २९४।। ___ अन्वयार्थ- (एवं) इस प्रकार, (चउत्थ पोसहं ठाणं) चौथे प्रोषध नामक स्थान
को, (संमासेण) संक्षेप से, (विवण्णिय) वर्णन करके, (एत्तो) अब, (कमेण) क्रम से, (सेसाणि) शेष स्थानों को, (संखेवओ) संक्षेप से, (वोच्छं) कहूँगा, (सुणह) सुनो!। .
भावार्थ- इस प्रकार प्रोषध नाम का चौथा प्रतिमास्थान संक्षेप से वर्णन किया गया। अब इससे आगे शेष सचित्तत्यागप्रतिमा, दिवामैथुनत्याग, ब्रह्मचर्यप्रतिमा, आरम्भनिवृत्तिप्रतिमा, परिग्रहत्यागप्रतिमा, अनुमतित्यागप्रतिमा, उद्दिष्टत्यागप्रतिमा स्थानों को संक्षेप से कहूँगा सो सुनो! ।।२९४।।