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(वसुनन्दि-श्रावकाचार (२८६)
आचार्य वसुनन्दि अर्थ- सूर्य के उदय और अस्तकाल की तीन घड़ी छोड़कर, वा मध्याह्न काल में एक मुहूर्त, तीन मुहूर्त काल में एक बार भोजन करना वह एक भक्त (मूलगुण) है।
जिनदास महत्तर ने आवश्यक चूर्णि में लिखा हैएगासणं णाम पुता भूमीतो न चालिज्जंति, सेसाणि हत्थे पायाणि चालेज्जावि। आवश्यकवृत्ति में हरिभद्रसूरि कहते हैंएकाशनं नाम सकृदुपविष्टपुताचलनेन भोजनम्। . प्रवचनसारोद्धार में आ० सिद्धसेन कहते है
एकं-सकृत्, अशनं-भोजनं; एकं वा अशनं-पुताचलनतो यत्र प्रत्यख्याने तदेकाशमेकासनं वा।
अर्थात भोजन के लिए बैठकर फिर भूमि से नहीं उठते हए एक बार भोजन करने को एकाशन या एकभक्त कहते हैं। पुतनाम नितम्बका है। एकाशन । करते समय नितम्ब भूमि पर लगे रहना चाहिए। हाँ, .एकाशन करने वाला नितम्ब को न चलाकर शेष हाथ-पैर आदि अंग-उपांगों को आवश्यकता पड़ने पर चला भी सकता है।
कुछ विद्वान लगातार तीन एकासन अर्थात् सप्तमी-अष्टमी-नवमी और त्रयोदशी-चतुर्दशी-पंद्रस के दिनों में एक बार भोजन करने को भी जघन्य प्रोषधोपवास में गिनते हैं। अशक्यावस्था में इन दिनों में भी दूसरे समय औषध, दूध, पानी आदि गुरु आज्ञा से ले सकते हैं।।२९२।।
उपवास के दिनों में राग के कारणों को छोड़ना चाहिए । सिरहाणुव्वट्टण-गंध-मल्लकेसाइदेहसंकप्पं । अण्णं पि रागहेउं विवज्ज्जए पोसहदिणम्मि ।। २९३।।
अन्वयार्थ- (पोसहदिणम्मि) प्रोषण के दिन, (सिरहाणुव्वट्टण-गंधमल्लकेसाइ-देहसंकप्पं) शीर्ष स्नान करना, उवटन करना, गंध लगाना, माला पहिनना केश, शरीरादि को संस्कारित करना (तथा), (अण्णं पि) अन्य भी, (रागहेडे) राग के कारणों को, (विवज्जए) छोड़ना चाहिए।
अर्थ- प्रोषध के दिन शिर से स्नान करना, उवटना करना, सुगंधित द्रव्य लगाना, माला पहनना, बालों आदि का सजाना, देह का संस्कार करना, तथा अन्य भी राग के कारणों को छोड़ देना चाहिए।।