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________________ (वसुनन्दि-श्रावकाचार (२७८) प्रोषध प्रतिमा प्रोषध के प्रकार उत्तम - मज्झ जहणणं' तिविहं पोसहविहाणमुद्दिवं । सगसत्तीए मासम्मि चउस्सु पव्वेषु २ कायव्वं । । २८० ।। अन्वयार्थ — (उत्तम - मज्झ - जहणणं) उत्तम, मध्यम, जघन्य, (विविह) तीन - प्रकार का, ( पोसहविहाणमुद्दिठं ) प्रोषध-विधान कहा गया है, (सगसत्तीए) अपनी शक्ति के अनुसार, (मासम्मि) माह के, (चउस्सु-पव्वेसु) चारों पर्वों में, (कामव्यं) करना चाहिए । १. ३. अर्थ — उत्तम, मध्यम, जघन्य के भेद से तीन प्रकार का प्रोषध-विधान कहा गया है। श्रावकों को अपनी शक्त्यनुसार माह के चारों पर्वों में अर्थात् दो अष्टमी और दो चतुर्दशी के दिनों में यह किया जाना चाहिए। व्याख्या- आ० समन्तभद्र कहते हैं आचार्य वसुनन्दि पर्वण्यष्टम्यां च ज्ञातव्यः प्रोषधोपवासस्तु। चतुरभ्यवहार्य्याणां प्रत्याख्यानं सदेच्छाभिः । । रत्न० श्रा० १०६ ।। अर्थ — चतुर्दशी और अष्टमी के दिन हमेशा के लिए व्रतविधान की इच्छा से चार प्रकार के आहारों का त्याग करना प्रोषधोपवास जानना चाहिए ।। २८० । । उत्कृष्ट प्रोषधोपवास की विधि सत्तम्मि- तेरसि दिवसम्मि अतिहिजणभोयणावसाणम्मि । भोत्तूण भुंजणिज्जं तत्थ वि काऊण मुहसुद्धिं । । २८१ । । पक्खालिऊण वयणं कर-चरणे णियमिऊण तत्थेव । पच्छा जिणिंदभवणं गंतूण जिणं णमंसित्ता । । २८२ ।। गुरुपुरओ किदिबम्मं वंदणपुव्वं कमेण काऊण। गुरु सक्खियमुववासं गहिऊण चउव्विहं विहिणा । । २८३ । । वायण कहाणुपेहण- सिक्खावण- चिंतणोवओगेहिं ऊण दिवससेसं " इ॰ मज्झम-जहणं. ब. किरियम्मि. 1 अवराहियवंदणं किच्चा । । २८४ । । २. प. पव्वसु.
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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