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________________ (वसुनन्दि-श्रावकाचार (२५८) आचार्य वसुनन्दि जघन्यभोगभूमियाँ मनुष्यों की ऊँचाई, आयु और कान्ति दोधणुसहस्सुत्तुंगा' मणुया पल्लाउगा जहण्णासु। उत्तत्तकणयवण्णा हवंति पुण्णाणुभावेण ।। २६०।। अन्वयार्थ— (जहण्णासु) जघन्य भोगभूमियों में, (पुण्णाणुभावेण) पुण्य के प्रभाव से, (मणुया) मनुष्य, (दोधणुसहस्सुत्तुंगा) दो हजार धनुष ऊँचे, (पल्लाउमा) एक पल्य की आयु वाले, (उत्तत्तकणयवण्णा) तपाये गये स्वर्ण के समान वर्ण वाले, (हवंति) होते हैं। अर्थ- जघन्य भोगभूमियों में पुण्य के प्रभाव से मनुश्य दो हजार धनुष ऊँचे, एक पल्य की आयु वाले और तपाये गये स्वर्ण के समान वर्ण वाले होते हैं।। व्याख्या- जघन्य भोगभूमि में हमेशा तृतीय काल रहता है। यहाँ के मनुष्यों की ऊँचाई दो हजार धनुष अर्थात् एक कोस (लगभग तीन कि०मी० से कुछ अधिक), आयु एक पल्य की और शरीर का रंग तपाये हुए स्वर्ण के समान होता है। यहाँ के स्त्री-पुरुषों के पृष्ठभाग में हड्डियाँ चौसठ होती हैं। सभी मनुष्य समचतुरस्र संस्थान से युक्त, एक दिन के अन्तराल से आंवले के बराबर भोजन ग्रहण करने वाले होते हैं। शेष वर्णन उत्तम भोगभूमि के समान जानना चाहिए। ।२६०।। . - कुभोगभूमियाँ मनुष्यों की आयु आदि वर्णन जे पुण कुभोयभूमीसु सक्कर-समसाय मट्टियाहार।३ फल-पुप्फाहारा केई तत्थ पल्लाउगा . सव्वे ।। २६१।। अन्वयार्थ- (जे पुण कुभोयभूमीस) जो जीव कुभोगभूमियों में उत्पन्न होते हैं, (केई) (उनमें से) कितने ही, (तत्थ) वहाँ पर, (सक्कर समसायमट्टियाहारा) शक्कर के समान स्वादिष्ट मिट्टी का आहार करते हैं, (कोई) (फल-पुष्पाहारा) फल-पुष्पों का आहार करते हैं, (सव्वे पल्लाउगा) सभी एक पल्य की आयु वाले होते हैं। ___ अर्थ- जो जीव कुभोगभूमियों में उत्पन्न होते हैं, उनमें से कितने ही वहाँ पर स्वभावतः उत्पन्न होने वाली शक्कर के समान स्वादिष्ट मिट्टी का आहार करते हैं, और कितने ही वृक्षों से उत्पन्न होने वाले फल-पुष्पों का आहार करते हैं और ये सभी जीव एक पल्य की आयु वाले होते हैं।। २. म. उत्तमकंचणवण्णा. १. इ. सहसा तुंगा. ३. इ. मट्टियायारा.
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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