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________________ वसुनन्दि-श्रावकाचार (२४९) आचार्य वसुनन्दि) बद्धायुष्क मनुष्य भोगभूमियाँ होते हैं बद्धाउगा सुदिट्ठी' अणुमोयणेण तिरिया वि। ‘णियमेणुवज्जंति य ते उत्तम भोयभूमीसु ।। २४९।। अन्वयार्थ- (बद्धाउगा सुदिट्ठी) बद्धायुष्क सम्यग्दृष्टिं, (य) और, (अणुमोयणेण) अनुमोदना से, (तिरिया वि) तिर्यञ्च भी, (उत्तम भोयभूमीस) उत्तम भोगभूमि में, (ते) वे, (णियमेण) नियम से, (उववज्जति) उत्पन्न होते हैं। ___अर्थ- बद्धायुष्क सम्यग्दृष्टि अर्थात् जिसने मिथ्यात्व अवस्था में पहिले मनुष्यायु को बाँध लिया है और पीछे सम्यग्दर्शन प्राप्त किया है, ऐसे मनुष्य पात्रदान देने से और दान की अनुमोदना करने से उक्त प्रकार के तिर्यश्च भी नियम से उत्तम भोगभूमि में उत्पन्न होते हैं। . व्याख्या– बद्धायुष्क– सम्यग्दर्शन उत्पन्न होने से पूर्व जिसने किसी परभावसम्बन्धी आयु का बंध कर लिया है, उसे बद्धायुष्क कहते हैं। अबद्धायुष्क- जिसने सम्यग्दर्शन उत्पन्न होने से पूर्व परभव सम्बन्धी आयु नहीं बाँधी है अर्थात् आयुकर्म का बंध नहीं किया है, वह जीव अबद्धायुष्क हैं। ___ जिसने परभव सम्बन्धी आय-कर्म का बन्ध कर लिया है वह निश्चित रूप से उसी आयु को प्राप्त करेगा। यदि किसी ने नरकायु का बन्ध सम्यग्दर्शन होने से पूर्व किया है तो वह प्रथम नरक में जायेगा, आगे नहीं। इसी प्रकार मनुष्य और तिर्यञ्च आयु का बन्ध किया है तो भोगभूमियों में जन्म लेगा, कर्मभूमियों में नहीं। यदि देवायु का बन्ध किया है तो अच्छे देवों में उत्पन्न होगा। शंका- क्या सम्यक्त्व के प्रभाव से आयुबन्ध का विनाश नहीं हो सकता? समाधान- नहीं। आयुबन्ध होने बाद वह छूटता नहीं- ऐसा उसका स्वभाव ही है। आ० वीरसेन स्वामी लिखते हैं कि- जिस्से गईए आउअंवद्धं तत्थेव णिच्छएण अज्जत्ति। (धवला १०/२३९) जिस गति की आयु बन्ध चुकी है, जीव निश्चय से वहीं उत्पन्न होता है। किसी जीव ने नरक या तिर्यश्च आयु का पूर्व में बन्ध कर लिया हो, तो वह मरकर भोगभूमि में ही जन्म लेगा। यह सम्यग्दर्शन का अपूर्व लाभ है। सम्यग्दर्शन के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए आ० समन्तभद्र ने लिखा है कि १. इं. सद्दिट्ठी, ब. सदिट्ठी. २. एकः प्रतिषु भोगभूमीसु इति पाठः.
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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