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________________ (२७) में देखते रहे हैं और श्रावकाचार को प्रतिष्ठित कर किस प्रकार पर्यावरण की सुरक्षा की है। वस्तुत: पर्यावरण सुरक्षित रखना ही श्रावकाचार की पृष्ठभूमि है। लगता है, जैनाचार्य पर्यावरण की समस्या से भलीभांति परिचित थे और प्रदूषण की सम्भावनायें उनके सामने थीं। इसलिए सबसे पहली व्यवस्था उन्होंने दी-व्यक्ति यत्नपूर्वक चले, यत्नपूर्वक ठहरे, यत्नपूर्वक बैठे, यत्नपूर्वक सोये, यत्नपूर्वक भोजन करे और यत्नपूर्वक बोले तो इस प्रकार के संयत जीवन से वह पाप कर्मों में नहीं बंधता। ___ जैन परम्परा में प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव पर्यावरण के प्रथम संवाहक महापुरुष थे जिन्होंने पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति में जीव के अस्तित्व की अवधारण दी और उनकी रक्षा के लिए अहिंसा को व्यापक बनाया। उन्होंने पर्यावरण की परिधि को भी असीमित कर दिया। यह अहिंसा मात्र स्थावर कायिक जीवों तक ही नहीं रही, बल्कि त्रस जीव भी इस परिधि में सम्मिलित हो गये। इसी के साथ आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आदि वे सारे क्षेत्र भी आ गये जिनका सम्बन्ध व्यक्ति और समाज से रहता है। उन सारे क्षेत्रों के पर्यावरण को विशुद्ध बनाये रखने के सिद्धान्त में जैनधर्म ने जो सिद्धान्त दिये वे अनुपम, अकाट्य और मानवता को छूने वाले थे। प्राचीन जैन साहित्य में पर्यावरण के ये सिद्धान्त बिखरे पड़े हैं। जैनाचार्यों ने श्रावकाचार के रूप में विशेष रूप से उन्हें उपन्यस्त किया हैं। हमने इन सिद्धान्तों को यहां एकत्रित करने का प्रयत्न किया है और बताया है कि जैनधर्म कदाचित् प्राचीनतम धर्म है जिसने पर्यावरण को इतनी गहराई से समझा है और उसे धर्म और मानवता से जोड़ा है। अब हम सभी एक दूसरे के साथ अद्वैत रूप में इतने अधिक जुड़ गये हैं कि किसी को भी अलग करके नहीं देखा जा सकता है। एक का सुख दूसरे का सुख है और एक का दुःख दूसरे का दुःख है। किसी एक वर्ग द्वारा की गई असावधानी से दूसरा वर्ग प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। श्रावकाचार की यही मूल भूमिका है। असावधानी ही आसक्ति हैं। तृष्णा और लोभ से सारा पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है। एक राष्ट्र ने अणु-विस्फोट किये तो दूसरे राष्ट्र उससे प्रभावित हो जाते हैं। सारी आवहवा और पानी प्रदूषित हो जाता है। इसी तरह एक ग्रह के विस्फोट से दूसरे ग्रह का वातावरण बदल जाता है। सूर्य सौर्यमण्डल का केन्द्र है समूची पृथ्वी और उस पर रहने वाले मनुष्य, पशु-पक्षी, सूर्य के कृतज्ञ हैं। उनका सारा जीवन सूर्य पर आधारित है। जल, वर्षा, वृक्ष, स्वास्थ्य, भोजन, आवास, वायु सब कुछ सूर्य के बिना हो ही नहीं सकता। सूर्यमण्डल के परिवर्तन से हमारा जीवन प्रभावित हो जाता है। पृथ्वी, चन्द्र, नक्षत्र आदि
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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