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माने। मानवता का सही साधक वह है जिसकी समूची साधना समता और मानवता पर आधारित हो और मानवता के कल्याण के लिए उसका मूलभूत उपयोग हो। एतदर्थ खुला मस्तिष्क, विशाल दृष्टिकोण, सर्वधर्म समभाव और सहिष्णुता अपेक्षित है। महावीर के धर्म की मूल आत्मा ऐसे ही पुनीत मानवीय गुणों से सिंचित है और उसकी अहिंसा वंदनीय तथा विश्वकल्याणकारी हैं और न सामाजिक सन्तुलन बनाये रखा जा सकता है। यही उनका सर्वोदयतीर्थ है। इस सिद्धान्त को पाले बिना न पर्यावरण विशुद्ध रखा जा सकता है और न संघर्ष टाला जा सकता है। ९. आध्यात्मिक पर्यावरण और सामाजिक सन्तुलन
संसार प्रकृति की विराटता का महनीय प्रांगण है, भौतिक तत्त्वों की समग्रता का सांसारिक आधार है और आध्यात्मिक चेतना को जाग्रत करने का महत्त्वपूर्ण संकेत. स्थल है। प्रकृति की सार्वभौमिक और स्वाभाविकता की परिधि असीमित है, स्वभावत: यह विशुद्ध है, पर भौतिकता के चकाचौंध में फसकर उसे अशुद्ध कर दिया जाता है। प्रकृति का कोई भी तत्त्व निरर्थक नहीं हैं उसकी सार्थकता एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। : सारे तत्त्वों की अस्तित्व-स्वीकृति समाज का निश्चल सन्तुलन है और उस अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर देना उस सन्तुलन को डगमगा देना है। पर्यावरण का यह असन्तुलन अनगिनत आपत्तियों का आमन्त्रण है जो हमारी सांसारिकता और वासना से जन्मा है, पनपा है।
सांसारिकता और वासना यद्यपि अनादिकालीन मैला आंचल है पर प्राचीन काल में वह इतना मैला नहीं हुआ था जितना आज हो गया है। जनसंख्या की बेहताशा बृद्धि ने समस्याओं का अंबार लगा दिया और प्रकृति में छेड़छाड़ कर विप्लव-सा खड़ा कर दिया। इसलिए उन्होंने लोगों को सचेत करने के लिए प्रकृति के अपार गुण गाये, उसकी पूजा की, काव्य में उसे प्रमुख स्थान दिया, ऋतु-वर्णन को महाकाव्य का अन्यतम लक्षण बनाया, रस को काव्य का प्रमुख गुण निर्धारित किया और काव्य की सम्पूर्ण महत्ता
और लाक्षणिकता के प्रकृति के सुरम्य आंगन में पुष्पाया। दूसरे शब्दों में प्रकृति की गोद में काव्य का जन्म हुआ और उसी में पल-पुसकर वह विकसित हुआ। पर्यावरण के प्रदूषित होने का भय भी वहां अभिव्यंजित है। १०. श्रावकाचार और पर्यावरण
__ वस्तुत: जीव अथवा व्यक्ति और पर्यावरण अन्योन्याश्रित है। उनके पृथक्-पृथक् अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। यहां प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण के कारणों के रूप में पृथ्वी (मृदा), जल, अग्नि, वायु आदि को लिया जा सकता है। यहां हम इनके प्रदूषण पर विचार करेंगे और देखेंगे कि जैनाचार्य इस समस्या को किस रूप