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________________ (२५) स्वावलम्बन को प्रमुखता देकर जीवन को एक नया आयाम दिया। श्रमण संस्कृति ने वैदिक संस्कृति में धोखे-धाखे से आयी विकृत परंपराओं के विरोध में जेहाद बोल दिया और देखते ही देखते समाज का पुन: स्थितिकरण कर दिया। यद्यपि उसे इस परिवर्तन में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा पर अन्ततोगत्वा उसने एक नये समाज का निर्माण कर दिया। इस समाज की मूल निधि चारित्रिक पवित्रता और दृढ़ता थी जिसे उसने थाती मानकर कठोर झंझावातों में भी अपने आपको संभाले रखा। जीवन के यथार्थता प्रामणिकता से परे होकर नहीं हो पाती। साध्य के साथ साधनों की पवित्रता भी आवश्यक है। साधन यदि पवित्र और विशुद्ध नहीं होंगे, बीज यदि सही नहीं होंगे तो उससे उत्पन्न होने वाले फल मीठे कैसे हो सकते हैं? जीवन की -सत्यता ही धर्म है। धोखा-प्रवंचना जैसे असामाजिक तत्वों का उसके साथ कोई सामंजस्य नहीं। धर्म और है भी क्या? धर्म का वास्तविक सम्बन्ध खान-पान और दकियानूसी विचारधारा से जुड़े रहना नहीं, वह तो ऐसी विचार क्रान्ति से जुड़ा है जिसमें मानवता और सत्य का आचरण कूट-कूट कर भरा है। एकात्मकता और सर्वोदय की पृष्ठभूमि में जीवन का ही रूप पलता-पुसता है। 'आज की भौतिकताप्रधान संस्कृति में जैनधर्म सर्वोदयतीर्थ का काम करता है। जैन धर्म वस्तुत: एक मानव धर्म है उसके अनुसार व्यक्ति यदि अपना जीवन-रथ चलाये तो वह ऋषियों से भी अधिक पवित्र बन सकता है श्रावक की विशेषता यह है कि उसे न्याय-पूर्वक धन-सम्पत्ति का अर्जन करना चाहिए और सदाचारपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। सर्वोदय दर्शन में परहित के लिए अपना त्याग आवश्यक हो • जाता है जैनधर्म ने उसे अणुव्रत किंवा परिमाणव्रत की संज्ञा दी है। इसमें श्रावक अपनी आवश्यकतानुसार सम्पत्ति का उपभोग करता है और शेष भाग समाज के लिए बांट देता है। अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्तवाद तथा शिक्षाव्रतों का परिपालन भी अत्मोन्नयन और समाजोत्थान में अभिन्न कारण सिद्ध होता है। ... सर्वोदय और विश्व-बंधुत्व के स्वप्न को साकार करने में भगवान महावीर के विचार नि:संदेह पूरी तरह सक्षम हैं, उसके सिद्धान्त लोकहितकारी और लोक संग्राहक हैं। समाजवाद और अध्यात्मवाद के प्रस्थापक हैं। उनसे समाज और राष्ट्र के बीच पारस्परिक समन्वय बढ़ सकता है और मनमुटाव दूर हो सकता हैं। इसलिये विश्वशांति को प्रस्थापित करने में अमूल्य कारण बन सकते हैं। महावीर इस दृष्टि से ही दृष्टा और सर्वोदयतीर्थ के सही प्रणेता थे। मानव मूल्यों को प्रस्थापित करने में उनकी यह विशिष्ट देन है जो कभी भुलायी नहीं जा सकती। इस संदर्भ में यह आवश्यक है कि आधुनिक मानस धर्म को राजनीतिक हथकण्डा न बनाकर उसे मानवता को प्रस्थापित करने के साधन का एक केन्द्रबिंदु
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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