________________
(वसुनन्दि-श्रावकाचार (२२१)
आचार्य वसुनन्दि यहाँ ऐसा प्रतीत होता है कि विवेकपूर्वक करुणाबुद्धि से कुपात्र को दान देना चाहिए, क्योंकि वह द्रव्य व्रत-तप-शील आदि से सहित है, कदाचित् दानी के अनुग्रह अथवा अन्य कारणों से सम्यक्त्व प्राप्त कर सकता है।
यदि कोई कुपात्र या अपात्र रोगी, शोकी, विपत्तिग्रस्त है, तो उसे जीवनदान के लिए अन्न, वस्त्र, औषधि, फल आदि दे देना चाहिए। यह दयादत्ति है जिसे आचार्य करुणादान भी कहते है। सत्पात्र मान कर इन्हें दान नहीं देना चाहिए। दान-पूजादि कार्यों के पूर्व स्व-विवेक से पात्र-अपात्र-पूज्य-अपूज्यादि को समझना अनिवार्य है।।२२३।।
दातार-गुण-वर्णन
दाता के सप्त गुण सद्धा भत्ती तुट्ठी विण्णाणमलुद्धया खमा सत्ती।२ जत्थेदे सत्त गुणा तं दायरं पसंसति ।। २२४।।
अन्वयार्थ- (जत्थ) जिसमें, (सद्धा) श्रद्धा, (भत्ती) भक्ति, (तुट्ठी) तुष्टी, (विण्णाणम्) विज्ञान, (अलुद्धया) अलुब्धता, (खमा) क्षमा, (सत्ती) शक्ति, (ऐदे सत्त गुणा) ये सात गुण होते हैं; (तं दायारं) उस दातार की, (पसंसंति) प्रशंसा की जाती है। ... अर्थ- जिस दातार में श्रद्धा, भक्ति, सन्तोष, विज्ञान, अलुब्धता, क्षमा और शक्ति, ये सात गुण होते हैं, ज्ञानी जन उस दातार को प्रशंसा करते हैं। ____व्याख्या– जिस दातार में श्रद्धा, भक्ति, सन्तोष, विवेक, अलोभता, क्षमा और शक्ति ये सात गुण पाये जाते हैं, उसकी प्रशंसा सभी ज्ञानी जन करते हैं।
पं० आशाधर दाता का लक्षण और उसके गुणों को लिखते हैं- नवकोटिविशुद्धस्य दाता दानस्य यः पति।
भक्तिश्रद्धासत्त्वतुष्टि ज्ञानालौल्यक्षमागुणाः । ।सा०ध०४७।।
अर्थ- नौ कोटियों से शद्ध दान का जो स्वामी होता है, जो दान देता है वह दाता है। भक्ति, श्रद्धा, सत्त्व, तुष्टि, ज्ञान, अलोलुपता, और क्षमा ये उसके गुण हैं।
१. ब. मलुद्धदया.
२. प.ध. सत्तं. . ३. श्रद्धा भक्तिश्च विज्ञानं तुष्टि शक्तिरलुब्धता।
क्षमा च यत्र सप्तैते गुणा दाता प्रशस्यते।। १५१।।गुणभू. श्रा. ।