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________________ वसुनन्दि- श्रावकाचार (२१८) सागार धर्मामृत (पंचम अध्याय) भी द्रष्टव्य है। आचार्य वसुनन्दि पात्र - भेद - वर्णन उत्तम - मध्यम- जघन्य पात्र कौन हैं तिविहं मुणेह पत्तं उत्तम मज्झिम- जहण्णभेएण । ar - णियम - संजमधरो उत्तमपतं हवे साहू ।। २२१ । । १ एयारस ठाणठिया मज्झिमपत्तं खु सावया भणिया । अविरयसम्माइट्ठी अन्वयार्थ - (उत्तम - मज्झिम- जहण्ण भेएण) उत्तम - मध्यम- जघन्य के भेद . से, (पत्तं) पात्र, (तिविहं मुणेह) तीन प्रकार के जानो, ( उनमें ), (वय- णियम - संजम धरो) व्रत-नियम-संयम को धारण करने वाले, (साहू) साधु, (उत्तमपत्तं) उत्तम पात्र, ( हवे) होते हैं, (एयारस ठाणठिया) ग्यारह स्थानों में स्थित, (सांवया) श्रावक, (मज्झिमपत्तं) मध्यम पात्र, (भणिया) कहे गये हैं, (खु) निश्चय से, (अविरयसम्माइट्ठी) अविरत सम्यग्दृष्टि जीव को, (जहणणपत्तं) जघन्य पात्र, (मुणेयव्वं) जानना चाहिए। जहणणपत्तं मुणेयव्यं ।। २२२ ।। २ अर्थ — उत्तम, मध्यम और जघन्य के भेद से तीन प्रकार के पात्र जानना चाहिए। उनमें व्रत, नियम और संयम को धारण करने वाला साधु उत्तम पात्र है। ग्यारह प्रतिमा स्थानों में स्थित श्रावक मध्यम पात्र कहे गये हैं, और अविरत सम्यग्दृष्टि जीव को जघन्य पात्र जानना चाहिए। व्याख्या - जो व्रत-नियम और संयम का सकल रूप में पालन करते हैं, ऐसे . मुनिराज उत्तम पात्र हैं। ग्यारह प्रतिमाओं में स्थित श्रावक मध्यम पात्र हैं और अविरत सम्यग्दृष्टि जीव जघन्य पात्र जानना चाहिए। सागार धर्मामृत में पं० आशाधर पात्र का स्वरूप कहते हैंयत्तारयति जन्माब्धेः स्वाश्रितान्यानपात्रवत् । मुक्त्यर्थगुणसंयोगभेदात्पात्रं त्रिधास्ति तत् । । ५/४३ ।। पात्रं त्रिधोत्तमं चैतन्मध्यमं च जघन्यकम् । सर्वसंयमसंयुक्तः साधुः स्यात्पात्रमुत्तमम्।। १४८।। एकादश प्रकारोऽसौ गृही पात्र मनुत्तमम् । विरत्या रहितं सम्यग्दृष्टिपात्रं जघन्यकम् ।। १४९ गूणभू० श्र० ।।
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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