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________________ विसुनन्दि-श्रावकाचार (२१४) आचार्य वसुनन्दि प्रमाद को परिभाषित करते हुए भास्करनन्दि आचार्य लिखते हैं कि प्रमादः कुशलकर्मस्वनादरउच्यते (तत्त्वार्थवृत्ति, ८/१) कुशल कर्मों में अनादर को प्रमाद कहते है। उस प्रमाद से युक्त.चर्या को, प्रमादचर्या कहते हैं। आचार्य समन्तभद्र कहते हैं कि - क्षितिसलिलदहन पवनारम्भं विफलम् वनस्पतिच्छेदम्। सरणं सारणमपि च प्रमादचर्या प्रभाषन्ते।। . __ (रत्नकरण्ड श्रावकाचार, ८०) अर्थ-प्रयोजन के बिना भूमि को खोदना, पानी का ढोलना, अग्नि का जलाना, पवन का चलाना और वनस्पति का छेदन करना तथा निष्प्रयोजन स्वयं घूमना और दूसरों को घुमाना, इत्यादि प्रमादयुक्त निष्फल कार्यों के करने को ज्ञानीजन प्रमादचर्या नामक अनर्थदण्ड कहते है। प्रमादयुक्त चर्या प्रमाद चर्या है। अत: प्रमाद (आलस्य) पूर्वक प्रवृत्तियों का त्याग करना चाहिए। उपरोक्त पांच प्रकार की दुःप्रवृत्तियों का अनर्थ रूप से वर्जन करना प्रत्येक श्रावक का कर्तव्य है। यहां तक तीन गुणव्रतों का कथन पूर्ण हुआ।।२१६।। . शिक्षाव्रत-वर्णन भोगविरति शिक्षाव्रत का लक्षण . . जं परिमाणं कीरइ मंडल-तंबोल-गंध पुप्फाणं। तं भोयविरइ भणियं पढमं सिक्खावयं सुत्ते।। २१७।। १ । अन्वयार्थ- (मंडण-तंबोल-गंध-पुप्फाणं) मण्डन, ताम्बूल, गन्ध और पुष्पादिक का, (ज) जो, (परिमाणं कीरइ) परिमाण किया जाता है, (तं) उसे, (सुत्ते) सूत्र में, (भोयविरइ पढमं सिक्खावयं भणियं) भोगविरति नाम का प्रथम शिक्षाव्रत कहा गया है। १. भोगस्य चोपभोगस्य संख्यानं पात्र सत्क्रिया। सल्लेखनेति शिक्षाख्यं व्रतमुक्तं चतुर्विधम्।।१४३।। यः सकृद् भुज्यते भोगास्ताम्बूलकुसुमादिकम्।। तस्य चा क्रियते संख्या भोगसंख्यानमुच्यते।।१४४।।गुणभू. श्रा० ।
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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