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________________ (वसुनन्दि-श्रावकाचार (२११) आचार्य वसुनन्दि) अनर्थदण्डत्याग गुणव्रत का लक्षण अय-दंड-पास-विक्कय कूड-तुलामाण कूरसत्ताणं। जं संगहो' ण कीरइ तं जाण गुणव्वयं तदियं ।। २१६।। ३ अन्वयार्थ- (अय-दंड-पास-विक्कय) लोहे के शस्त्र, दण्ड, जालविक्रय, (कूड-तुलामाण) झूठी-तराजू और कूट मान का, (कूरसत्ताणं) क्रूर जीवों का, (ज) जो, (संगहो ण कीरइ) संग्रह नहीं करता है, (तं) उसे, (तदिय) तृतीय, (गुणव्वयं जाण) गुणव्रत जानो। अर्थ- लोहे के शस्त्र तलवार, कुदाली, वगैरह के, तथा दण्डे और पाश (जाल) आदि के बेचने का त्याग करना, झूठी तराजू और कूट मान अर्थात् नापने-तोलने आदि के बाँटों का कम नहीं रखना तथा बिल्ली, कुत्ता आदि क्रूर प्राणियों का संग्रह नहीं करना, सो यह तीसरा अनर्थदण्ड-त्याग नाम का गुणव्रत जानना चाहिए। व्याख्या- लोहे के शस्त्र, तलवार, कुदाली बगैरह, तथा डण्डे और पाश (जाल) आदि के बेचने का त्याग करना, झूठी तराजू और कूटमान अर्थात् नापने-तोलने आदि के बांटों को कम नहीं रखना, तथा कुत्ता, बिल्ली, नेवला आदि क्रूर प्राणियों का संग्रह नहीं करना, सो यह तीसरा अनर्थ दण्ड त्याग नाम का गुणव्रत जानना चाहिये। अनर्थदण्ड त्यागवत- अर्थ:- अनर्थः।। “स्वरेऽक्षरविपर्ययः।।” (कातन्त्र रूपमाला ४६३) के अनुसार “तत्पुरुष समासे नस्य अक्षरविपर्ययो भवति स्वरे परे।" अर्थात् नज़ तत्पुरुष समास से नकार के आगे स्वर आने पर अक्षर विपर्यय हो जाता है। अर्थात् अ आगे और न पीछे हो जाता है, जिससे अन् शब्द बनता है और पुन: अनर्थ बनता है। . ___अर्थ शब्द अनेकार्थवाची है। यथा-आशय, प्रयोजन, लक्ष्य, उद्देश्य, • अभिलाषा, आदि अनेक अर्थ, अर्थ शब्द के हैं जिनमें से प्रयोजन यह अर्थ यहाँ ग्रहण • करना चाहिए। अनर्थदण्डव्रत का लक्षण करते हुए पं० आशाधर जी कहते हैंपीडा पापोपदेशाद्यैदेहाद्यर्थाद्विनाऽङिनाम् । अनर्थदण्डस्तत्त्यागोऽनर्थदण्डव्रतं मतम् ।।६।। १. ब. संगहे. २. इ.झ.प. तइयं, ब तिइयं. . ३. कूटमानतुलापास-विषं शास्त्रादिकस्य च। क्रूरप्राणभृतांत्यागस्ततृतीयं गुणव्रतम् ।। १४१ । ।गुणभू श्रा. ।।
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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