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________________ (वसुनन्दि-श्रावकाचार (१९६) आचार्य वसुनन्दि इन श्लोकों का अर्थ मूल श्लोक के भावों पर है। आचार्य सोमदेव प्रवृत्ति सावधानी रखने को अपने ग्रन्थ में लिखते है "गृहकार्याणि सर्वाणि दृष्टिपूतानि कारयेत्।” अर्थात् घर के सब काम देखभाल कर करना चाहिए। और भी देखिये - - आसनं शयनं यानं मार्गमन्यत्र तादृशम्। अदृष्टं तन्न सेवेत यथाकालं भजन्नपि । । सो० उपा० ३२२ ।। अर्थात् आसन् शय्या, मार्ग, अन्न तथा अन्य भी जो वस्तु हो, समय पर उसका उपयोग करते समय बिना देखे उपयोग नहीं करना चाहिए। इसी के भावों को पं० आशाधर जी के शब्दों में देखें इत्यनारम्भजां जह्याद्धिंसामारम्भजां प्रति । व्यर्थस्थावरहिंसावद्यतनासवहेद् गृही । । ४/१० । । गृही श्रावकों के लिए स्पष्ट निर्देश देते हुए पं० आशाधर आगे लिखते हैंगृहवासो विनारम्भान्न चारम्भो विना बधाद् । त्याज्यः स यत्नात्तन्मुख्यो दुस्त्यजस्त्वानुषङ्गिकः।।४/१२।। दुःखमुत्पद्यते जन्तोर्मनः संक्लिश्यतेऽस्यते। तत्पर्यायश्च यस्यां स हिंसाहेया प्रयत्नतः । ।४/१३।। अर्थ — गृहस्थाश्रम आरम्भ के बिना सम्भव नहीं और आरम्भ हिंसा के बिना होता नहीं। इसलिए जो मुख्य संकल्पी हिंसा है उसे सावधानतापूर्वक छोड़ना चाहिए। जीविका मूलक कृषि आदि के आरम्भ से उत्पन्न हिंसा छोड़ना अधिक शक्य नहीं है। जिस हिंसा में जीव को दु:ख उत्पन्न होता है, उसके मन में संक्लेश होता है, और उसकी वर्तमान् पर्याय छूट जाती है उस हिंसा को पूरे प्रयत्न से छोड़ना चाहिए। अहिंसाव्रत के फल के सन्दर्भ में आचार्य शिवकोटि का श्लोक द्रष्टव्य है - — मनोवचनकायैर्यो न जिघांसति देहिनः । स स्याद् गजादि युद्धेषु जयलक्ष्मी निकेतनम् ।। रत्नमाला ३९।। अर्थ - जो मन, वचन, काय से जीवों को नहीं मारता है, वह गजादि के भयङ्कर युद्ध में भी विजय प्राप्त करता है। आचार्य समन्तभद्र में कहते हैं - “अहिंसा भूतानां जगति विदितं ब्रह्म परमम् । । स्वयंभू, ११९।।” अर्थात् प्राणियों की अहिंसा इस जगत् में परम ब्रह्म रूप से प्रसिद्ध है । अत: अहिंसा का ही आचरण श्रेयस्कर है।।२०९।।
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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