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(वसुनन्दि-श्रावकाचार (१९२) आचार्य वसुनन्दि
सामान्य से पंचाणुव्रतों का लक्षण निर्देश पाणाइवायविरई सच्चमदत्तस्स वज्जणं चेव।
थूलयड बंभचेरं' इच्छाए गंथपरिमाणं ।। २०८।।
अन्वयार्थ- (पाणाइवायविरई) प्राणातिपातविरति, (सच्चम्) सत्य, (अदत्तस्स) अदत्तवस्तु का, (वज्जणं) त्याग, (बंभचेरं) ब्रह्मचर्य, (च) और, (इच्छाएं) इच्छानुसार, (गंथपरिमाणं) ग्रन्थ परिमाण, (थूलयड) स्थूल व्रत हैं।
अर्थ- प्राणातिपातविरति, सत्य और अदत्तवस्तु का त्याग तथा ब्रह्मचर्य और परिग्रह का परिमाण करना स्थूलव्रत है।
व्याख्या- गाथा में आगत “थूलयड' अर्थात् स्थूलव्रत सभी व्रतों के साथ । जोड़ना हैं, जैसे- स्थूलप्राणातिपातविरतिव्रत, स्थूलसत्यव्रत, स्थूलअदत्तवस्तु वर्जनव्रत, स्थूलब्रह्मचर्यव्रत और इच्छानुसार परिग्रहपरिमाणव्रत यह पांच अणुव्रत हैं। दूसरे शब्दों में इसे ऐसा भी कह सकते हैं कि स्थूल हिंसा का त्याग, स्थूल झूठ का त्याग, स्थूल चोरी का त्याग, स्वदारसन्तोष और सीमित परिग्रह रखना यह पाँच अणुव्रत हैं।
स्थूल व्रत- स्थूल का अर्थ होता है मोटा। हिंसा आदि को स्थूल कहने के दो हेतु दिये हैं। प्रथम, चलते-फिरते दिखाई देते प्राणी की हिंसा स्थूल हिंसा है, क्योंकि जिसकी हिंसा की गयी वह स्थूल है सूक्ष्म नहीं। इसी तरह स्थूल झूठ बगैरह भी समझना चाहिए। दूसरा, ऐसी हिंसा झूठ आदि को साधारण लोग भी हिंसा, झूठ आदि कहते हैं। अत: उसके त्याग को स्थूल व्रत कहा है। सारांश यह है कि जिसे सामान्य लोग भी हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह कहते हैं, उनका त्यांग अणुव्रती करता है।
गृही श्रावक की आत्मशक्तियां इतनी विकसित नहीं होती कि वह सीधे महाव्रतों का पालन कर सके, अत: उसके लिए अणुव्रतों का उपदेश दिया गया है। आचार्य सोमदेव कहते हैं - "तद् व्रतमाचरितव्यं यत्र न संशयतुलामारोहत: शरीरमनसी।। नी०वा०९।। अर्थात् वह व्रत आचरण करना चाहिए जिससे शरीर और मन संशय की तराजू पर न चढ़ने पाये अर्थात् जिनके पालन से क्लेश न हो वे व्रत पालन करने चाहिये। चारायण मुनि ने भी कहा है -
अशक्त्या य: शरीरस्य, व्रतं नियममेव वा।
संक्लेश भवेत् पश्चात् पश्चातापात् फलच्युतिः।।यश०आ०७।। .. १. ब. बंभचेरो.