________________
(. वसुनन्दि- श्रावकाचार
(१८७)
आचार्य वसुनन्दि
द्वितीय मद्यादिस्थूलदोषै रहितः मद्यादयः मद्यमांसमधूनि पञ्चोदुम्बरादि सजंतुफलानि ।
द्यूतं मांसं सुरावेश्या पापर्द्धिः परदारता। स्तेयेनसह सप्तेति व्यसनानि विदूरयेत्।।
कन्दमूलपत्रशाकासनचर्मपात्रगतघृततैलजलहिंग्वादीनि च वै रहित: ।
अर्थ — मद्य, मांस, मधु, पांच उदुम्बर फल और जुआ, मांस, मदिरा, वेश्या, शिकार, परस्त्री और चोरी- इन सात व्यसनों का त्यागी शुद्ध, सम्यग्दृष्टि दूसरा भेद है। (प्रसंगवश इन दो स्थानों की चर्चा की है) ।
- इस सम्बन्ध में चारित्रपाहुड गाथा क्रं० २१ की श्रुतसागरी टीका एवं कार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा क्र० २०५ - ६ की शुभचन्दाचार्य की टीका विशेष द्रष्टव्य है।
आचार्य वसुनन्दि ने भी सम्भवत: इसी कथन शैली का अनुशरण किया है और गाथा क्र० ५७ को कुछ ढीला छोड़ा है। इस गाथा में अष्टमूलगुणों का वर्णन है इस विषय को भी नकारा नहीं जा सकता; क्योंकि विभिन्न आचार्यों ने मूलगुणों के नाम विभिन्न प्रकार से प्रस्तुत किये हैं। प्रस्तुत हैं कुछ आचार्यों के मत—
मद्यमांसमधुत्यागैः सहाणु व्रतपञ्चकंम्।
अष्टौर्मूलगुणानाहुर्गृहिणां श्रमणोत्तमा। ।रत्न०श्रा०६६।।
मधुमांसपर्रित्यागः पञ्चचोदुम्बर वर्जनम् ।
हिंसादिविरतिश्चास्य व्रतं स्यात् सार्वकालिकम् । । महापुराण, ३८ / १२२ ।। मद्यं मासं क्षौद्रं पञ्चोदुम्बर फलानि यत्नेन ।
हिंसाव्युपरतिकामैर्मोक्तव्यानि प्रथममेव।। पुरुषार्थ सि०६१।।
त्याज्यं मांसं च मद्यं च मधूदुम्बरपंचकम्।
अष्टौ मूलगुणाः प्रोक्ता गृहिणो दृष्टिपूर्वकाः । । पद्म० पञ्च०६/२३ ।। हिंसासत्यस्तेयादब्रह्मपरिग्रहाच्च बादरभेदात् ।
द्यूतान्मांसान्मद्याद्विरतिर्गृहिणोष्ट सन्त्यमीमूलगुणः ।। चारित्रसार ३ ।।
मद्यमांसमधुरात्रिभोजनं क्षीरवृक्षफलवर्जनं त्रिधा ।
कुर्वते व्रतजिघ्रक्षया बुधास्तत्र पुष्यति निषेविते व्रतम् ।। अमित० श्रा०५/१ ।। मद्यमांसमधुत्याग संयुक्ताणुव्रतानि नुः ।
अष्टौमूलगुणः पञ्चोदुम्बरैश्चार्यकेष्वपि।।रत्नमाला-शिवकोटि।। तत्र मूलगुणाश्चाष्टौ गृहिणां व्रतधारिणाम्। क्वचिदव्रतिनां यस्मात् सर्वसाधारण : इमे ।।