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(वसुनन्दि-श्रावकाचार (१८०)
आचार्य वसुनन्दि) वाहन- आचार्य अकलंक के अनुसार – अभियोग्या दाससमानाः । ९ । यथेह दासा वाहनादि व्यापारं कुर्वन्ति तथा तत्राऽऽभियोग्या वाहनादिभावेनोपकुर्वन्ति। (४/४) अर्थात् जो दासों के समान होते हैं वे अभियोग्य देव कहलाते हैं। जैसे यहाँ पर दास लोग वाहन आदि के द्वारा व्यापार (क्रियाएं) करते हैं उसी प्रकार स्वर्गों में आभियोग्य जाति के देव वाहन आदि के द्वारा इन्द्रादि देवों का उपकार करते हैं। अभिमुख्य (सेवामुख्य) के योग अभियोग कहलाते हैं। अभियोग में होने वाले आभियोग्य कहलाते हैं। यह देव मुख्यत: वाहन आदि विक्रिया करते हैं, अत: इन्हें ही वाहन जाति के देव कहते हैं।
सम्मोहन-यह भी देवों की एक जाति है। यह देव नृत्य-गान कर दूसरों को मोहित आकर्षित करके आनन्द मानते है। इनके हाव-भाव विदूषकों जैसे रहते है।।१९४।।
मरण के चिह्न, व्याकुलता एवं अशरणता छम्मासाउयसेसे वत्थाहरणाइं हुंति .मलिणाई। णाऊण चवणकालं अहिययरं रुयइ सोगेंण।।१९५।। हा हा कह णिल्लोए' किमिकुलभरियम्मि अइदुगंधम्मि। णवमासं-पूइ-रुहिराउलम्मि गन्मम्मि वसियव्व।। १९६।। किं करमि' कत्थ वच्चमि कस्स साहामि जामि कं शरणं। ण वि अत्थि एत्थ बंधू जो मे धारेइ णिवडतं।।१९७।। वज्जाउहो३ महप्पा एरावण-वाहणो सुरिंदो वि। जावज्जीवं सो सेविओ वि ण घरेइ मं तह वि।।१९८।। ___ अन्वयार्थ- (देवगति में), (छम्मासाउयसेसे) छह माह आयु शेष रहने पर, (वत्थाहरणाई) वस्त्राभूषण, (मलिणाई) मलिन, (हुति) हो जाते हैं (तब), (चवणकालं) च्यवन काल को, (णाऊण) जानकर, (सोगेण) शोक से, (अहिययरं) और भी अधिक, (रुयइ) रोता है। (हा हा) हाय! हाय! (णिल्लोए) नृलोक में, (किमिकुलभरियम्मि) कृमि कुल-भरित, (अइदुगंधम्मि) अति दुर्गन्धित, (पूइ-रुहिराउलम्मि) पीप और खून से व्याप्त, (गब्मम्मि) गर्भ में, (णवमासं) नौ माह, (वसियव्वं) रहूंगा। (किं करमि) मैं क्या करूं?, (कत्थ वच्चमि) कहा जाऊँ, (कस्स साहामि) किसको प्रसन्न करु, (कं शरणं जामि) किसकी शरण में जाऊँ?,
२.
इ. करम्मि.
१. नृलोके. ३. वज्रायुधः.