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________________ वसुनन्दि- श्रावकाचार आचार्य वसुनन्दि (१७४) भूख-प्यास की वेदना से मरण उप्पण्णपढमसमयम्हि कोई जणणीइ छंडिओ संतो। कारणवसेण इत्थं सीउण्ह - भुक्ख तण्हाउरो मरइ । । १८४ ।। अन्वयार्थ — (उप्पण्णपढमसमयम्हि ) उत्पन्न होने के प्रथम समय में ही, (कारणवसेण) कारणवश से, (जणणीइ) माता के द्वारा, (छंडिओ संतो) छोड़ दिये गये (कोई) कितने ही जीव, ( इत्थ) इस प्रकार (सीउण्ड भुक्ख तण्हाउरो ). शीत-उष्ण, भूख-प्यास से पीड़ित होकर, (मरइ) मर जाते हैं। माता भावार्थ — कितने ही जीव ऐसे हैं जो मनुष्य योनि में जन्म लेकर किसी कारणवश के द्वारा छोड़ दिये जाते हैं। इस प्रकार के जीव निःसहाय होते हैं, जिस कारण शीत - उष्ण, भूख और प्यास की वेदना सहन करते हुए मरण को प्राप्त हो जाते हैं। पौराणिक कथा ग्रन्थों में भी ऐसे कई उदाहरण हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि बड़े-बड़े सम्पत्ति धारियों द्वारा भी, लोकलाज, भय, अपवाद के कारण से अथवा अयोग्य सन्तानें यत्र-तत्र छोड़ी गई, बहाई गई अथवा फेंक दी गई। कंस और कर्ण इसके प्रसिद्ध उदाहरण हैं । । १८४ । । माँ-बाप के अभाव में दुःख बालत्तणे वि जीवो माया पियरेहिं कोवि परिहीणो । - उच्छि भक्तो जीवइ दुक्खेण परगेहे । । १८५ । । अन्वयार्थ - (बालत्तणे वि) बालपन में ही, (माया - पियरेहि) माता-पिता से, (परिहीणो) रहित, (कोवि जीवो) कोई जीव, (परगेहे) पराये घर में, ( उच्छिष्टं भक्खतो) जूठन खाता हुआ, (दुक्खेण) दुःख के साथ, (जीवइ) जीता है। अर्थ — बालपन में ही माता-पिता से रहित कोई जीव पराये घर में जूठन खाता हुआ, दु:ख के साथ जीता है। व्याख्या - बालपन में ही कोई जीव माता-पिता के मर जाने, बिछुड़ जाने अथवा विदेश चले जाने से भयङ्कर दुःख का अनुभव करते हुए दूसरों के घर में जूठन खाते हुए जीते हैं। प्रथम तो जिन बच्चों के माँ-बाप बचपन में मर जाते हैं, उन्हें संरक्षण देने वाला भी कोई नहीं मिलता कदाचित् मिल भी जाये तो वह उन्हें विभिन्न प्रकार से कष्ट पहुंचाता है, न समय से भोजन देता है और न ही पानी। 'कहाँ से आ गया, न जाने किसकी औलाद है, किस पापी ने जन्म लिया जो मां-बाप को ही चाट गया'........ आदि आदि दुर्वचनों को सहता हुआ, जूठन (उच्छिष्ठ, खाने के
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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