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(वसुनन्दि- श्रावकाचार
घन फल कर लीजिये ।
(१६८)
एक योजन व्यास वाले गोल क्षेत्र का घनफल
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१०= परिधि, ×- क्षेत्रफल, ११ घनफल,
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आचार्य वसुनन्दि
_१×१×१० = १०,
उत्तम भोगभूमि के एक दिन से लेकर सात दिन तक के उत्पन्न हुए मेढ़ें के करोड़ों रोमों के अविभागी खण्ड करके उन खण्डित रोमाग्रों से उस एक योजन विस्तार वाले प्रथम गड्ढे को पृथ्वी के बराबर अत्यन्त सघन भरना चाहिये ।
इस गड्ढे के रोमों की संख्या - ४१३४५२६३०३०८२०३१७७७४९५ १२१९२०००००० 0000000000,
व्यवहार पल्य • सौ-सौ वर्ष में एक-एक रोम खण्ड के निकालने पर जितने समय में वह गड्ढा खाली हो, उतने काल को 'व्यवहार पल्य' कहते हैं।
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उद्धार पल्य- - व्यवहार पल्य की रोमराशि में से प्रत्येक रोम खण्ड को असंख्यात करोड़ वर्षों के जितने समय हों उतने खण्ड करके, उनसे दूसरे पल्य को भरकर पुनः एक-एक समय में एक-एक रोम खण्ड को निकालें। इस प्रकार जितने समय में वह दूसरा पल्य खाली हो जाय उतने काल को 'उद्धार पल्य' समझना चाहिये ।
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अद्धा पल्य • उद्धार पल्य की रोमराशि में से प्रत्येक रोमखण्ड के असंख्यात वर्षों के समय प्रमाण खण्ड करके तीसरे गड्ढे के भरने पर और पहले के समान एक-एक समय में एक-एक रोमखण्ड को निकालने पर जितने समय में वह गड्ढा खाली हो जाय उतने काल को 'अद्धा पल्य' कहते हैं ।
मध्य के उद्धार पल्य से द्वीप और समुद्रों का प्रमाण जाना जाता है। इस अद्धा पल्य से नारकी, तिर्यञ्च, मनुष्य और देवों की आयु तथा कर्मों की स्थिति का प्रमाण जाना जाता है।
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सागर- - दस कोड़ाकोड़ी व्यवहार पल्य का एक व्यवहार सागर, दस कोड़ाकोड़ी उद्धार पल्यों का एक उद्धार सागर, दस कोड़ाकोड़ी अद्धा पल्यों का एक अद्धा सागर होता है। अर्थात् एक करोड़ को एक करोड़ से गुणा करने पर कोड़ाकोड़ी बनता है। ऐसे दस कोड़ाकोड़ी पल्यों का एक सागर होता है।
कुलकरों की देव नारकियों की आयु में जो पल्य और सागर का प्रमाण आया है और ऊँचाई में धनुष का प्रमाण आया है उनको समझने के लिये इन परिभाषाओं को याद रखना चाहिये।
सागर और सागरोपम में अन्तर कुछ भी नहीं है। 'सागर' शब्द तो सिर्फ काल की गणना को सूचित करता हैं जबकि सागरोपम से यह अर्थ स्पष्ट होता है कि यह