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वसुनन्दि-श्रावकाचार (१६७)
आचार्य वसुनन्दि ८ त्रुटिरेणुओं का- १ त्रसरेणु ८ त्रसरेणुओं का
१ रथरेणु ८ रथरेणुओं का- उत्तम भोगभूमिजों का १ बालाग्र ८ इन बालाग्रों का- मध्यम भोगभूमिजों का १ बालाग्र ८ इन बालाग्रों का- जघन्य भोगभूमिजों का १ बालाग्र ८ इन बालायों का- कर्म भूमिजों का १ बालाग्र ८ कर्मभूमिज के बालारों की- १ लिक्षा ८ लिक्षा की
१ यूका ८ यूका की ८ जौ का . १ अंगुल
अंगुल के तीन भेद – उत्सेधांगुल, प्रमाणांगुल और आत्मांगुल। उपर्युक्त परिभाषा से सिद्ध हुआ अंगुल उत्सेधांगुल कहलाता है। पाँच सौ उत्सेधांगुल का एक प्रमाणांगुल होता है। जिस काल में भरत और ऐरावत में जो-जो मनुष्य हुआ करते हैं उस-उस काल में उन्हीं मनुष्यों के अंगुल का नाम आत्मांगुल होता है।
' किस अंगुल से किसका माप होता है? – उत्सेधांगुल से देव, मनुष्य, तिर्यञ्च और नारकियों के शरीर की ऊँचाई का प्रमाण और चारों प्रकार के देवों के निवासस्थान व नगरादि का प्रमाण जाना जाता है। : प्रमाणांगुल से द्वीप, समुद्र, कुलाचल, वेदी, नदी, कुण्ड या सरोवर, जगती
और भरत आदि क्षेत्रों का प्रमाण जाना जाता है। .. आत्मांगुल से झारी, कलश, दर्पण, वेणु, भेरी, युग, शय्या, शकट, हल, मूसल, शक्ति, तोमर, सिंहासन, बाण, नालि, अक्ष, चामर, दुन्दुभि, पीठ, छत्र, मनुष्यों के निवासस्थान, नगर और उद्यान आदिकों का प्रमाण समझना चाहिए। - धनुष का प्रमाण- छह अंगुलों का – १ पाद, २ पादों की १ वितस्ति, दो वितस्तियों का १ हाथ, २ हाथ का १ रिक्कू, दो रिक्कू का १ दण्ड या धनुष अर्थात् ४ हाथ का १ धनुष और दो हजार धनुष का एक कोस होता है।
योजन का प्रमाण- चार कोस का एक योजन होता है इसे लघु योजन कहते हैं। इसी योजन को पांच सौ से गुणा करने पर १ महायोजन बनता है। यथा - ४४५०० =२०००, इन २००० कोस का एक महायोजन होता है।
प्रल्य का प्रमाण– चार कोस के योजन विस्तार वाले गोल गड्डे का गणित शास्त्र से घनफल निकाल लीजिये। अर्थात् एक योजन व्यास वाले एक योजन गहरे गड्ढे का