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(वसुनन्दि-श्रावकाचार (१६६)
आचार्य वसुनन्दि (होइ) होती है, (पढमाइ जमुक्क्स्स ) प्रथमादि पृथ्वियों में जो उत्कृष्ट आयु कही है, (साहियं) कुछ अधिक, (तं) वही, (विदियाइस) द्वितीयादि नरकों में, (जहण्णं जाण) जघन्य आयु जानो, (जिणवरिंदेहि) जिनेन्द्र भगवान् ने, (विदियाइ पुढवीसु) द्वितीयादिक पृथ्वियों में, (उक्कस्साउपमाणं) उत्कृष्ट आयु का प्रमाण, (तिय सत्त दस य सत्तरस दुसहिया बीस तेत्तीसं) तीन, सात, दस, सत्तरह, बाईस, तेतीस, (सायरसंख्या) सागर प्रमाण, (एसा कमेण) इस क्रम से, (णिट्ठि) कहा है।
अर्थ- शास्त्रों में प्रथम पृथ्वी के नारकियों की आयु दस हजार वर्ष की कही गई है, और उत्कृष्ट आयु एक सागरोपम की होती है। प्रथमादि पृथ्वियों में जो उत्कृष्ट आयु कही गई है, कुछ अधिक वही द्वितीयादि नरकों में जघन्य आयु जानो। जिनेन्द्र भगवान् ने द्वितीयादिक पृथ्वियों में उत्कृष्ट आयु का प्रमाण तीन, सात, दस, सत्तरह, बाईस, तेतीस सागर प्रमाण क्रम से कहा है। ___व्याख्या- सिद्धान्त शास्त्रों में प्रथम नरक के नारकियों की जघन्य (अत्यल्प) आयु दस हजार वर्ष कही गई है और उत्कृष्ट (अधिकतर) आयु एक सागरोपम अथवा सागर की कही गई है।
प्रथम आदि नरकों में जो उत्कृष्ट आयु है उससे कुछ अधिक अर्थात् एक समय अधिक वही आयु दूसरे आदि नरकों की जघन्य आयु है।
दूसरी पृथ्वी में उत्कृष्ट आयु तीन सागर, तीसरी में सात सागर, चौथी में दस सागर, पांचवीं में सत्तरह सागर, छठवीं में बाइस सागर और सातवीं पृथ्वी में तेतीस सागर है। सागर और सागरोपम दोनों एकार्थवाची हैं।
शङ्का– सागर किसे कहते हैं? क्या सागरोपम सागर से भिन्न है? .
समाधान- सागर का लक्षण समझने के लिए अंगल, हस्त, धनुष आदि के प्रमाण को समझना आवश्यक है। यहाँ पर परमाणु से पल्य और सागर बनाने तक की प्रक्रिया को प्रदर्शित करते हैं___परमाणु- आदि, अन्त और मध्य से रहित पुद्गल के एक अविभागी टुकड़े को परमाणु कहते हैं। वह परमाणु अन्तरङ्ग बहिरङ्ग कारणों से स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण गुणों के द्वारा स्कन्ध की तरह पूरण और गलन अर्थात् वृद्धि-हानि को प्राप्त होता रहता है, इसलिए उसे पुद्गल कहते हैं। उन अनन्तानन्त परमाणुओं के समूह (स्कन्ध) का नाम अवसन्नासन्न है। आगे-आगे के प्रमाणों को स्पष्ट करते हैं
अनन्तानन्त परमाणुओं का - १ अवसन्नासन्न ८ अवसनासन्न का
१ सन्नासन्न ८ सन्नासन्नों का
१ त्रुटिरेणु