________________
(वसुनन्दि- श्रावकाचार
(१६५)
आचार्य वसुनन्दि
शङ्का — किस पृथिवी से निकलकर नारकी जीव, क्या बन सकता है ?
-
समाधान — सातवीं पृथ्वी से निकला हुआ प्राणी नियम से संज्ञी तिर्यञ्च होता है तथा संख्यात वर्ष की आयु का धारक हो मरणकर पुन: नरक जाता है। छठवी पृथिवी से निकला हुआ जीव संयम को प्राप्त नहीं होता। पांचवीं पृथिवी से निकला हुआ जीव संयम तो पा सकता है; किन्तु मोक्ष नहीं जा सकता। चौथी पृथिवी से निकला हुआ जीव मोक्ष पा सकता है: किन्तु तीर्थङ्कर नहीं हो सकता है। तीसरी, दूसरी और पहली पृथिवी से निकला जीव सम्यग्दर्शन की विशुद्धि के कारण तीर्थङ्कर पद पा सकता है।
नरकों से निकले हुए जीव बलभद्र, नारायण और चक्रवर्ती पद को छोड़कर ही मनुष्य पर्याय को प्राप्त कर सकते है अर्थात् मनुष्य होकर भी बलभद्र, नारायण अथवा चक्रवर्ती नहीं हो सकते।'
4
शङ्का — नारकियों में अवधि ज्ञान की सीमा कितनी है ?
समाधान- देवों की तरह नारकियों को भी भव प्रत्यय अवधि ज्ञान होता है। प्रथम नरक के नारकी अपने अवधि ज्ञान से एक योजन अर्थात् चार कोष तक की बात जानते है। दूसरे के साढ़े तीन कोष, तीसरे के तीन कोष, चौथे के ढाई कोष, पांचवें के दो कोष, छटवें के. डेढ़ कोष और सातवें के एक कोष प्रमाण की बात को अपने अवधिज्ञान से जान लेते है । यह प्रमाण सम्यग्दृष्टि नारकियों की अपेक्षा कहा है, मिथ्यादृष्टियों के तो इससे भी कम ज्ञान की सीमा होती है।
इस प्रकार से यहाँ सात नरकों का संक्षेप से वर्णन किया गया है।
नारकियों की आयु
पढमाए पुढवीए वाससहस्साइं दह जहण्णाऊ ।
समयम्मि वण्णिया सायरोवमं होइ उक्कस्सं । । १७३ ।। पढमाइ जमुक्कस्सं विदियाइसु साहियं जहण्णं तं
। तिय सत्त दस य सत्तरस दुसहिया वीस तेत्तीसं । । १७४ । । सायरसंखा एसा कमेण विदियाइ जाण पुढवीसु । उक्कस्साउपमाणं णिदिट्ठ
जिणवरिंदेहि।।१७५।।
अन्वयार्थ – (समयम्मि) परमागम में, (पढमाए पुढवीए) प्रथम पृथ्वी के नारकियों की (जहण्णाऊ) जघन्य आयु, (दह वाससहस्साइं ) दस हजार वर्ष की, (वण्णिया) कही गई है, (उक्कस्सं) उत्कृष्ट आयु, (सायरोवमं) एक साग़रोपम की,