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________________ आचार्य वसुनन्दि (वसुनन्दि- श्रावकाचार (१५४) अन्वयार्थ - (दसव्वंगो) जला दिये गये है सर्वाङ्ग जिसके, (ऐसा वह नारकी), (कह वि य माएण) किसी भी प्रकार से, (तत्तो) उस (अग्निकुण्ड) से, (पलाइऊणं) भागकर, (गिरिकंदरम्मि) पर्वत की गुफा में, (सरण त्ति मण्णंतो) शरण मिलेगा ऐसा मानता हुआ', (सहसा ) अचानक (एकदम ), ( पविसइ) प्रवेश करता है । (तत्थ वि) वहां भी, (उवरिं) (उसके ऊपर, (सिलाउ) शिलाएं, (पति) पड़ती है, (तो) तब, ( ताहिं ) उनसे, (चुण्णिओ संतो) चूर्ण होता हुआ, (गलमाणरुधिरधारो ) जिसके खून की धारा बह रही है (ऐसा होकर), (रडिऊण) चिल्लाता हुआ, (खणं) क्षणमात्र में, (तओ) वहां से, (णीइ) निकल भागता है। भावार्थ - जबर्दस्ती दूसरे नारकियों ने अग्निकुण्ड में डालकर जिसके सर्व अंग जला दिये हैं, ऐसा वह नारकी मौका पाते ही उस अग्निकुण्ड से भागकर पर्वत की गुफा में यह सोच कर शीघ्र प्रवेश करता है कि 'यहाँ शरण मिलेगी, यहाँ मैं सुख से बैठ सकूंगा। किन्तु वहाँ पर भी उसके ऊपर बड़ी-बड़ी चट्टाने टूट कर पड़ने लगती हैं, तब वह नारकी उनसे चूर-चूर होता हुआ अर्थात् टुकड़े-टुकड़े होता हुआ और जिसके शरीर से माथे से एवं अन्य अंगों से खून की धार बह रही है, ऐसा होकर चिल्लाता हुआ शीघ्र ही वहां से भाग निकलता है। जहाँ वह क्षण भर शरण पाने के लिये गया था वहाँ से भी उसे पाप के उदय से दुःख ही प्राप्त हुए । । १५१-१५२।। शरीर के तिल बराबर टुकड़े होने पर भी मरण नहीं रइयाण सरीरं कीरड़ जड़ तिलपमाण खंडाइ | पारद - रसुव्व लग्गइ अपुण्णकालम्मि ण मरेइ । । १५३।। अन्वयार्थ - (णेरइयाण सरीरं) नारकियों के शरीर के, (जड़) यदि, (तिलपमाणखंडाइ) तिल बराबर भी खण्ड कर दिये जावें, (तो भी वह), ( पारद - रसुव्व लग्गइ) पारे के समान आपस में मिल जाते हैं, (क्योंकि), ( अपुण्णकालम्मि ण मरेइ) अपूर्ण काल में नहीं मरता है। विशेषार्थ — बड़ी-बड़ी शिलाएं गिरने से जिसका सारा शरीर चूर-चूर हो गया है अर्थात् तिल-तिल प्रमाण हो गया है, ऐसा भी नारकी असमय में, अकाल में मरण को प्राप्त नहीं होता है अपितु शरीर तुरन्त ही पारे के समान जुड़ जाता है। वैक्रियक शरीर वालों का अकाल में मरण नहीं होता है। । १५३ ।।
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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